Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 08
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 472
________________ 442 जैनकया रत्नकोष नाग आठमो. शा दरखानंदन सोनागी,साचो वड वैरागी // सम्मति अर्थविचारी सरु, ' साचो शुनमति रागी // श्री० // // मात पुंजीबाई कूरखें जायो, नामें नवनिधि थाइ // वाचक धर्मविजय वर तेहना, दीपे अधिक सवाई। श्री० // 3 // तस यंतेवासी गुपनरिया, बोल न वोले विरुया // श्रीजय विजय विबुध श्रुतदारिया, पाले सूधी किरिया // श्री० // 4 // तस पदपंकज चमर सरीखा, श्रीगुजविजय कवीशा // गुणगंनीरिम मेरुगिरीशा, श्रुतजलसिंधु मुनीशा // श्री० // 5 // तस चरणांबुज सेवक सुंदर, शुनकिरियागुणशूरा // साधे योगान्यास अखंमित, नहिं गुणरयणे अधूरा // श्री०॥ 6 // महिमावंत महंत मुनीश्वर, चरण नमे अवनीशा // श्रीगुरु सुमतिविजय उपगारी, प्रतपो कोडि वरीसा // श्री० // 7 // ते श्रीगुरु महिमानिधि सानिध्य, रास रसिक में निपायो / शांति अनुगुणराशि नणंतां, नवनिधि आनंद पायो // श्री० // ॥पूर्व चरित्र तणे अनु सारे, ए संबंध बनाया // लान अनंत लह्यो ए रचतां, दिन दिन सुजस सवाया // श्री० // // // सकल संघने मंगलकारी, शांति जिणंद सुखदाया // रामविजय कहे ए जिनवरके, हर्प धरी गुण गाया // श्री. // 10 // संवत सत्तर पंचाशीया वर्षे, वैशाख मास कहाया // गुदि सप्तमी गुरु पुष्य संयोगें, पूरण कलश चढाया // श्री० // 11 // अधिक न्यून जे कांड एणीमें, अण उपयोगे लिखाया // ते सुकवि सवि शोधी लेजो, करि सुनजर सुपसाया // श्री० // 12 // श्रीराजनगरनो संघ सोनागी,तेहने प्रथम सुणाया // इति वृद्धि प्रगटी अधिकरी, आनंद अधि क उपाया // श्री० // 13 // इति श्रीशांतिजिनप्रबंधे रासवंधे मुलतानुसंधे प्रनोरक्तारजन्म जन्ममहोत्सव नामस्थापन लेखकशालामहोत्सव पावन वयःप्रापण राज्यस्थापन राजकनीपाणिग्रहण चक्ररत्नोत्पत्ति परवंसा धन चक्रवर्तिराज्यानिपेकोत्सव पट्खमपालन जवाऽसारतानासन, वार्षि कदानसमर्पण चारित्रग्रहण केवलोत्पत्ति चतुःपष्टिसुरमिलन समवसरण निमांपश तर्णन देशनादान तन्मध्ये पंचेंश्यिविषयवान, तऽपरि गुराध मकुमारसंबंधकथन,तदनंतर कपायोपरि नागदत्तसंबंधकयन तदनंतर विस्त रतः लम्यतमूलपाइादशवतकथन तन्मध्ये प्रथमव्रतोपरि यमपाश संबंध तदनंतर तिीयव्रतोपरि नत्रेष्टिसंबंधकथन तदनंतर तृतीयत्रतो

Loading...

Page Navigation
1 ... 470 471 472 473 474 475