Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 08
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 474
________________ जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. // GG || सर्वस्मिन् नूत्वा प्रस्ताविक श्लोक तथा गाया // 330 // इति : पंमित श्रीरामविजय विरचित शांतिनाथनगवाननो रास समाप्त // ॥अथ स्त्रीने शीलपालवाना यत्किंचित वोलो लखीये ये॥ 1 पिता वांधव प्रमुख कोइपण पुरुपनी कोटें वलगी मलq नहिं. 2 कोई परपुरुपने न्हवराववो नहिं. 3 कोई परपुरुपर्नु उवटणादिकथी थंगमर्दन करवं नहिं. 4 कोई परपुरुप सायें पत्रादिकथी खेलतुं नहिं. 5 कोइ पर पुरुपनो वेडो पकडी वात करवी नहिं. 6 कोई परपुरुषसाथें हसीने हाथ ताली लेवी नहिं. 7 कोई परपुरुपनी वेणी गुंथवी नहिं. 7 कोई परपुरुपनां अंग चांपां नहिं. ए कोई परपुरुपना हाथनी पाननी वीडी लेवी नहिं. 10 कोई परपुरुपसाबें एक शच्यायें बेस बने सुवु नहिं. 11 वाटें शेरीयें पुरुपना संघमां जावु नहिं. 12 घोडा वगेरे आमश विनाना वाहनपर वेसवु नहिं. 13 ज्येष्ट, ससरो, सासु तथा सासरामां कोई मोटेरानी साथें हा वाजी करवी नहिं. 15 कोई परपुरुप साधे एकांतमा रहे नहिं. 15 परपुरुपयी दृष्टि मेलाची सरागथी जोवु नहिं. 16 कोई परपुरुपसाय सांकेतिक नापाथी वोल नहिं. 17 योगी, जरडा, निदाचर, तेनी सायें नापण करवू नहिं. 17 कोई पुरुप देखे तेम वडीनीति लघुनीति करवी नहिं. १ए ज्यां पुरुप सुता होय, त्यां अनर्गल था फरवू नहिं. 20 पुरुप देखतां बालस मरडवू नहिं. 21 तेम शरीरना अवयव उघाडा करी वता ववा नहिं.२५ अत्यंत मिष्ट पदार्थ खावापर प्रीति राखवी नही.२३ नोज न अल्प करवू.२४ महोटे स्वरथी हत, नहिं. 25 अजाणे घेर जावु नहिं. 26 पीयर जाजु रहेवू नहिं. 27 घरनी वात कोइन कहेवी नहीं, 27 सासरा नुव्य कपटथी पियरीयाने यापवूनही, धीरा तथा नीचा स्वरथी बोलवु. 30 अंग सर्व मंमित राखq.३१ पोताना स्वामीन धपमान थाय त्यांजवू नहि. Recepper20REEEEEEEEEEEE // इति श्री जैनकधारनकोयत्याष्टमी / जागः समानिमगमत // - pr .. rahe -ital MARA SA AMA

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