Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 08
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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________________ श्री शांतिनाथनो रास खंग हो. 4 मी थया, केक तजी विकर्म // 4 // तम नातुं सवि जगतनु, कग्यो जि नवर जाण // कौशिक जिम एक अनव्यने, न थयुं का कल्याण // 5 // अग्निये पण सीके नहिं, जे करडू कण होय // तेम अनव्यने तारवा, सम रथ नहिं जिन कोय // 6 // उपर नूमि न नीपजे, जेम जगमां का धान्य // बोधि न होय अनव्यने, तेम जिनदेशन वाणि // 7 // अति शयवंत माहामुनि, महागोप अनिधान // गुण अनंत जिनवरतया, कुण कही शके सुजाण // 7 // ॥ढाल त्रेपनमी॥ // त्रिपदीनी देशी // चोत्रीश अतिशयवंत मुणिंद, महीममल विचरे जिनचंद, नवियण मन आनंद तो॥१॥जयो जयो नवियण मन आणंद ॥ए आंकणी // स्वेद मल रोग रहित प्रनु अंग,श्वास पद्मगंध होय सुचंग, मांस रुधिर सितरंग तो // जयो // // नवि देखे थाहार नीहार, यति शय जन्म तणा ए चार,होवे अंग मजार तो // ज० // 3 // योजन नूमि सुर नर तिरि कोड, वेसे निराकुल मननें कोड, कुण करे एहनी होड तो // ज० // 4 // सदु समजे योजन लगें वाणी, जलके नामंगल नीशाणी, श्रीजिनगुगनी खाणि तो // ज० // 5 // पंचशत कोश लगें मुर्निद, रोग ' वैर इति मारी प्रत्यद, अति वर्षण ने अवर्ष तो // ज० // 6 // स्वपर चक्र नय वोल ए आउन दुवे ए आगमनो पाठ, एम अग्यारनो गाठ तो॥ ज० // ७॥घातिकर्मक्ष्यथी एअग्यार, हवे देवकत उगणीश विचार, मुणिये नवि निर्धार तो // ज० // // धर्मचक्र प्रनु आगल सोहे, चामरयुग नविजन मन मोहे, मणि सिंहासन जोय तो // ज॥ ए // त्रत्रय इंध्वज प्रवर, हेमकमल विरचे तिहां सुरवर, त्रिदु गढ अतिहि मनोहर तो // ज० ॥१॥चनमुह रचना धर्म प्रकास, चेश्यतरु दी उल्लास,अधो होय कंटक आस्य तो // ज० // 11 // तरु नमन मुनि ध्वनि सारी, पृष्ठानुपाती पव न निर्धारी, अतिशय गुण वलिहारी तो // ज० // 12 // पंखी पण प्र दक्षिणा दिती, गंध जलष्टि तिहां कणे ढुंती, कुसुमवृष्टि विरचंती तो // जा // 13 // व्रत सीधे नवि वाधे केश, जघन्यथकी सुरकोटि प्रवेश, श तु अनुकूल अशेष तो // ज० // 14 // ए जंगणीश अतिशय सुर कीधा, एम चोत्रीश थया परतिक्षा, सघला कारिज सिद्धां तो // ज० // 15 //

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