Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 08
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 444
________________ ४२३ जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. जीअनुमोदे तस नारी, दान मुनि, मन वस्युं ॥ हो ॥ १७ ॥ होजी . थयां सुरुतारथ दोय, मुनिवर वोरीने वल्या ॥ हो ॥ होजी दंपतीना तिः । णि वार,मनह मनोरथ सवि फल्या॥हो॥१७॥होजी पाल्युं तेणें वहुकाल, आवकवत जावें करी॥ हो ॥ दोजी करि असण अंतकाल, गयां ईशाने : ते मरी ॥ हो० ॥ १७ ॥ हजी तिहाथी चवी नरदेव, शूरपाल थयो तुं . सही ॥ हो० ॥ होजी नारीनो ते जीव, शीलमती इहांकणे थ॥ हो. ॥२०॥होजी पूरवनव दत्त दान,तास प्रनावें पामिया॥होगा होजी चिंतित धन सन्मान, तुम्हें लह्यां सवि सुख कामियां ॥ हो ॥२१॥ होजी एम सांजली ततकाल, जातिसमरण उपन्युं ॥ हो ॥ होजी दीतुं सवि शूर . पाल, पूरवनवरुत आपणुं ॥ हो ॥ २२ ॥ होजी चंपाल सुतने राज्य, सोपी जनक नारी सही ॥ हो० ॥ होजी त्रिदु जरों लीधी दीख, क्रोध कपाय धरे नहिं ॥ दो० ॥ २३ ॥होजी पाली विशुद्ध चारित्र, पाती करम क्ष्य घातियां ॥ हो ॥ होजी त्रिदु जण लही वर नाण, मुक्ति गयां नव जीतियां ॥ हो० ॥ २४ ॥ दोजी कहे एम शांति नगवान, अ तिथिसंविनाग व्रत ऊपरें । हो ॥ होजी निसुणे पर्पद वार, जिनवर वा पी ए आदरें ॥ दो० ॥ २५ ॥ होजी के कही ए ढाल,हर्षे उतातीशमी ॥हो॥होजी राम कहे नजमाल,नवि सुपजो साकर समी॥हो॥२६॥ इति द्वादश अतिथिसंविनागव्रते भरपालकथानकम् ॥ १२ ॥ १७२४ ॥ ॥दोहा॥ ॥ एम व्रत वारे जिन कह्यां,श्रावकनां अतिसार ॥ चक्रायुध नृप श्राग लें, नविजनने उपगार ॥ १ ॥ धर्म गृहीनो साधतां, करे निज यातम शुदि ॥ चढते परिणामें चढी, संयम ग्रहे विबुध ॥ २ ॥ अथवा एकादश . वती,पडिमा बहे मुजाण ॥ अंते अगसण यादरे,श्रावक तेह सुजाण ॥ ३॥ त्रिधा चतुर्धाबादरे,अगसण ने सागार ॥ वर्धमान परिणामथी,पाले निरतिचार ॥ ४॥ इह लोकाशंमा प्रथम, तिम परलोकाशंस ॥ जी वितथागंसा कही. तेम बली मरणाशंस ॥ ५ ॥ काम जोग वांठे नहिं. पंच दोष ए टास ॥ धाराधे संलेखना, आवक था नजमाल ॥६॥ जघन्य श्रायु सौधर्म,अच्युत मुर नल्लष्ट ।। सुरलोके मुख जोगवी,शिवपद सहे थनीट ॥७॥ धर्म एह आवकतगो,बीजो मुनिवर धर्म ॥ पंच समिति

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