Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 08
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 435
________________ श्री शांतिनाथनो रास खंम हो. ४ घणारे हो देखी थयां उजमाल ॥ नि० ॥ ६ ॥ हो करे पुरमा बाजी विका, श्राजीविका रे हो चाले सुखें गुजरान ॥ शीलवती कारन करे, कारज करे रे हो पति विषु न जहे मान ॥ नि ॥ ॥ हो एक दिन सास एम कहे, एम कहे रे हो जीरण कंचुक कतार । वेपी बोडाच तुं शिर तणी, शिर तणी रे हो कहेण न माने लगार ॥ नि ॥ ॥ हो सासू ससरो थाक्यां कही, याक्यां कही रे हो पण ते हठीली नाण ॥ हो थइ सहुने अलरखामणी, अलवामणी रे हो कर्म करे ते प्रमाण ॥नि ॥ ॥ हो पतिविरहें या दूबली, दूबली रे हो बीज चांदनीया रेत् ॥ हो ण ण प्रीतम सांजरे, सांगरे रे हो साले नवल सनेह ।। नि ॥ १० ॥ हो मुखहूंती बोल्ने नहि, बोले नहिं रे दो करे सविशेषु काम ॥ हो कुलला राखे जली, राखे नली रे हो शीलवती निज माम ॥ नि ॥ ११ ॥ हो हवे सुपो ते पुरराजीयो, राजीयो रे हो शूर पाल अनिधान ॥ लोक सहू हितकारणे, कारणे रे हो सरोवर मांमधु सुजाण ॥ नि ॥ १२ ॥ हो निर्धन जन थावे घणां, थावे घणां रे हो तिहां कणे करवा काम ॥ स्थित लोक मजरियां, मजुरीयां रेहो पामे खासा दाम ॥ नि० ॥१३॥ होचात नगरमां विस्तरी, विस्तरी रे हो थयों जापी रोजगार ।। हो महिपाल पण यावीयो, श्रावीयो रे हो लेई साधे परिवार ॥नि ॥ १४ ॥ हो करे रोजगार मजूरनो, मजुरनो रे हो उदरभरण सुरखें थाय ॥ हो वान बल्यो वेला वली, वेता वली रे हो दिवस सुरखें तस जाय ॥ नि ॥ १५॥ हो एक दिन गज चढी रा जीयो, राजीयो रे हो सरोवर जोबा काज ।। हो तेजी तुरिय पलाणिया, पलानिया रे दो साथै सबलो साज ॥ नि ॥ १६॥ हो नवरंग नेजा फरदरे, फरहरे रे दो नोचन धुरे रे निशाण ॥ हो पइ थस्वार ते या चीयो, श्रावीयो रे हो जाला फलदल जाण ॥ नि ॥ १७॥ दो गज बंधे चढ्यो राजवी, राजवीरे दो कनी मुनटनी कोहि ॥ हो कोम जरी मजुरीयां, मजरीयां रे दो चाप धरी मन कोड ॥ नि० ॥१७॥ को निरबले नजरें निहालाने. निदालीने रे दो तय दौठो महिपाल । हो शीलवती बीवी प्रिया, टीजी प्रिया रे हो चली चिरहनी जाल पनि Hit हो परनरने निग्ये नहिं, निगरचे नहिं में दो शीलवती सुकुमार न Lokaantar

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