Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 08
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 434
________________ ४०६ जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. ' हां कोई तास रे ॥ एम सुणि तेह वलिया सवे, याविया नृपतिपास - रे ॥ हा ॥ १२ ॥ वात सुगी राय विलखो थयो, चिंतवे चित्तमा एम रे ॥ अहो अहो माहरां सयण ते, वरततां दशे कहो केम रे ॥हा॥ . २३ ॥ राज्य पाम्यो पण रति नहिं,सांनली सयणर्नु मुख रे ॥ एह वेदण" रहे थति घणी,जुन जुन कर्म अति तिरक रे ॥हा॥२४॥ खम बछे कही क मनी, अनवगति ढाल ताल रे ॥ राम कहे सांजलो हवे कहूँ, जे लघु ते । महिपाल रे॥हा॥२५॥ सर्व गाथा॥१६ए॥श्लोक तथा गाथा मली॥ ॥दोहा॥ ॥जिण वरसें ते नीलस्यो,गेहथकी शूरपाल ॥ तेहथकी बीजे वरस,काठो पड्यो कुष्काल ॥ १ ॥ मूलथकी वूतो नहीं, पड्यो काल विकराल ॥ ज़रि लोक क्ष्य नीपन्यो, वहेचे नूखें वाल ॥ २ ॥ मारग संचर दुवा, फरे तस्करनां बूंद ॥ नूरव्या नर ना करे, मानवप्रत्ये घबद ॥३॥ कप्टथकी पामे तिहां, मुनिवर पण आहार ॥ रंक मला लिये कँटीने, एहवो हाहाकार ॥॥ परणी पण तरुणी तजे,निःस्नेहीजरतार ॥ नेहरहे नहिं कोश्नो, न पले निज प्राचार ॥ ५॥ गति मति सवि जाये गली, एहवो जाणी काल ॥ निजकुटुंब लेइ नीसखो, मंदिरथी महिपाल ॥ ६ ॥ ॥ ढाल चुम्मालीशमी ॥ ॥ हो सायर सुत सोहामणा ॥ ए देशी ॥ दो महिपाल परिवारा, प रिवारयुं रे हो नीसरियो परदेश ॥ हो संबल नहिं एक दिवसनो,एक दिव सनो रे हो नहिं समाधि लवलेश ॥१॥ निजकृत्य आगे रे कोइ बलीयो नहीं रे॥ ए श्रांकणी॥ हो गाम नयरपुरमा जमे, पुरमां जमे रे हो कोण दिये श्रावकार ॥ लोक कहे परदेशीया, परदेशीया रे हो कना न रहो इण तार नि०॥शाहो शून्य मंदिरयावी रहे,आवी रहे हो जुरख्यां नजाये रात ॥ हो निंद न श्रावे नयणले,नयणले रे हो उसी चले प्रनात ॥ नि० ॥ ३ ॥हो पंथे पग चाले नहीं, चाले नहिं रे हो सानले कुवचन तास ।। करे गुजरान फल फूला,फल फूला रे हो चिंते चित्त उदास । नि० ॥ ४ ॥ हो केम कुटुंब जीवाडगुं. जीवाड' रे हो नहिं कोडी पेदास ॥ सूरज उग्ये उतीने, उ जतीने रे दो करवी परनी याश ॥नि०॥५॥ दो जेमतेम करतां अनुक्रमें, अनुको रे हो थाच्या पुर महाशात ।। लोक वमे सुखीयां घणां, सुखीयां

Loading...

Page Navigation
1 ... 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475