Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 08
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text
________________
३८
जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो.
2
नक्ति विशाल रे ॥० ॥ २५॥ प्रभु यागल नाचे ते सुरवर, थेइ थेइ शब्द कहंत रे ॥ तार तार करुणारससागर, जगतवत्सल जयवंत रे ॥ ज० ॥ २६ ॥ तुहि तत्त्व परमहितकारी, परमनक्तप्रतिपाल रे || देव निररंजन निरुपा धिक गुण, जय जय देव दयाल रे ॥ ज० ॥ २७ ॥ लोक सदू देखी चित हरख्यां धन जिनशासन एह रे ॥ जिहां एहवा प्रजुने दरवारें, नाचे देव सनेह रे ॥ ॥ २८ ॥ देव कहे चिंतामणि सुलहो, कल्पडुम सुरकुंन रे ॥ पल ए जैनधर्म प्रति लहो, लही सेवो निर्देन रे ॥ ज० ॥ २७ ॥ ये ए गुर शिवपद सुख शाश्वत, सुलि एमकेइ नविवृंद रे ॥ वृज्या धर्म नजी जिनव रनो, खाणी मन थानंद रे ॥॥ ३० ॥ करी प्रभावना शासन केरी, सुर पहोतो निज नाम रे || इंड्ने कहे जे तुमो परकाश्यो, ते नर गुणमलि धाम रे ॥ ॥ ३१ ॥ इणी परें पोपधत्रत व्याराधो, नवि चालीजें चित्त रे ॥ तो सुर शिवपद सुख पामीजें, कहे जगगुरु सुपवित्त रे ॥०॥३२॥ उद्वे
में चालीशमी ढालें, पोपवत्रत अधिकार रे ॥ रामविजय कहे एम व्रत निर्मल, पालतां नवनिस्तार रे ॥ ॥ ३३ ॥ इति एकादश पौषभवते जिनचं कथानकम् ॥११॥ सर्वगाथा ॥१५७८ ॥ श्लोक तथागाथा मली ॥ ७६ ॥ ॥ अथ द्वादश व्यतितिसंविभागत्रत संबंधः ॥ ॥ दोहा ॥
|| वे अतिथि संविभागनुं, द्वादश व्रत अनिराम || शिक्षाव्रत चोयुं सही कहे शांति भगवान ॥ १ ॥ लौकिक तिथि पर्वादिनो, जिणें वरज्यो व्यव हार ॥ जोजन का यावियो, यतिथि कहियें सार ॥२॥ उक्तं च ॥ तिथि पर्वोत्सवाः सर्वे त्यक्ता येन महात्मना ॥ अतिथि तं विजानीयावेपमन्यागतं विशुः ॥ १ ॥ पूर्वदोहा ॥ साधुयतिथि को श्राद्धने, तस निरवद्य श्राहार ॥ संविभाग कीजें जलो, इण व्रतें लहे नवपार ॥३॥ प्रथम यतिने ग्रापीने, पढ़ें बावरे याप ॥ मुनि न मले तो पण करे, दिशालोक गतपाप ॥ ४ ॥ यकं ॥ पढमं जई दाउरा, अप्पणा पणमिण पारेई || यस सु विडिया, नुजेश् य कय दिसालोई ॥ २ ॥ श्रन्यत्राप्युक्तं ॥ [श्रद्न्यः प्रथ मं निवेद्य सकलं संत्साधुवर्गाय च प्राप्ताय प्रविभागतः शुचिधिया दत्वा यथाशक्तितः ॥ देशात सधर्मचारिभिरलं, सार्धं च काले स्वयं, मुंजीत सुजाजनं गृहवतां पुष्पं जिनेवितम् ॥ ३ ॥ पूर्वदोहा ॥ पंच व्यतिचार
1

Page Navigation
1 ... 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475