Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 08
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 395
________________ श्री शांतिनाथनो रास खंम छो. ३३. वचन सांजली सुलस,मनमां थयो खुशाल ॥ धन उपराजण ए जलो,लह्यो उपाय सुविशाल ॥ १० ॥ रत्नपुंज पुरमा रहि, १६ वणिकने गेह ॥ नर साथै गर्ता जइ, मेले रयण सनेह ॥ ११ ॥ एक बहुमूलुं पामीयो, रयण गोपवी धंग ॥ वीजास्यगनो नाग देश, चाट्यो धरि मन रंग ॥ १२ ॥ ॥ ढाल एकत्रीशमी ॥ ॥ कानें मुश शिर जटा ॥ ए देशी ॥ सुलस तिहाथी चालीयो । सुणो जवि जावें लाल ॥ लोन महाकुःखदायकु ॥ जज जगवंतकुं वे ॥ मायानो वांध्यो प्राणीयो ॥ सु० ॥ पग पग पामे अपायकुं ॥न ॥१॥ श्रीमंतपुरमांहे आय के ॥ सु० ॥ वेची रयण कस्या दाम के ॥ ॥ करीयाj बहु लेइ चल्यो ॥ सु० ॥ चिंते थयुं मुज काम के ॥ ज० ॥शा मारगमांहि आवतां ॥सु०॥ अटवी प्रावी विकराल के न०॥ दव लाग्यो तिहां जोरशुं ॥ सु० ॥ पवनें हो पसरी जाल के ॥ ज० ॥ ३ ॥ करियाणुं दाधुं सवे ॥ सु० ॥ कर्म सवल प्रतिकूल के ॥न ॥ जीव लेइ नागे तिहां ॥ सु० ॥ लोन ए कुःखनुं मूल के ॥ न० ॥ ४ ॥ कोइक गामने परिसरें ॥ सु० ॥ नमतां हो तापस दीव के ॥ ज० ॥ कर जो डी तेहने नम्यो ।सु॥ पासें जश्न पवित के॥ ॥॥तापस कहे तव सुलसकुं । सु ॥ कोन मूलकसें घाया श्हां ॥ ज० ॥ फिकर करे क्यु चित्तमां ।। सु० ॥ वत्स तें जावेगा किहां ॥ ज० ॥ ६ ॥ सुलस कहे सां सुणो ॥ अवे उपकारी लाल ॥ धन कारण जगती जम्यो ॥ ज० ॥ पार न पायो दलिको ॥ अवे ॥ काल बहु युं निर्गम्यो ॥ ज० ॥ ७॥ अव सांई मुफकों मीले अ॥ नाग्य फल्या मेरा सही ॥न॥ तुम जेसे मोकुं मिले ॥५०॥ उरकुंचव जाचुं नहिं ॥ना काहे पूकारतव्यकुं॥ अवे सुगा बाबू लाल ॥ धन हम धूल समा गिने ॥ ज० ॥ ए मायाके खेल हे ॥ श्रब० ॥ सो योगी वर्जे जिणे ॥ न ॥ए । दोलत उनियां कारि मी ॥ ॥ विसंतां नहिं वार के ॥ ॥ मस्त रहो प्रनुध्यानमां ।। य० ॥ धरो एक योगसे प्यार के ॥ न ॥ १० ॥ सुलस कहे तुम सच कहा । अचे सुरण सांइ लाल ॥ मार्ग योगाज्यासका ॥ ॥ पण जग . उनियादारकुं॥ अ० ॥ बंधन याशापाशका ॥ ॥ ११ ॥धन विणुं जगत चले नहिं ॥ थवे० ॥ धन मूल ए संसार के ॥जम् ॥ करो

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