Book Title: Jain Karm Siddhant ka Tulnatmaka Adhyayan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 9
________________ ४. नाम-रूप ८०/ ५. षडायतन ८० ६. स्पर्श ८१ / ७. वेदना ८१/ ८. तृष्णा ८१ / ९. उपादान ८१ / १०. भव ८२ / ११. जाति ८२ / १२. जरा-मरण ८२ / ७. महायान दृष्टिकोण और अष्टकर्म ८. कम्मभव और उप्पत्तिभव तथा घाती और अघाती कर्म ९. चेतना के विभिन्न पक्ष और बन्धन आधुनिक मनोविज्ञान में चेतना ८४ / जैन दृष्टिकोण ८५ / बौद्ध दृष्टिकोण से तुलना ८६ / अध्याय ४ बन्धन से मुक्ति की ओर (संवर और निर्जरा) १. संवर का अर्थ २. जैन परम्परा में संवर का वर्गीकरण ३. बौद्ध दर्शन में संवर ४. गीता का दृष्टिकोण ५. संयम और नैतिकता १. खान-पान में संयम ९३ / २. भोगों में संयम ९४/ ३. वाणी का संयम ९४/ ६. निर्जरा द्रव्य और भाव निर्जरा ९५ / सकाम और अकाम निर्जरा ९५ / जैन साधना में औपक्रमिक निर्जरा का स्थान ९६ / औपक्रमिक निर्जरा के भेद ९८ / ७. बौद्ध आचार दर्शन और निर्जरा ८. गीता का दृष्टिकोण ९. निष्कर्ष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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