Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 07 08
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 2
________________ विषय-सूची। नियमावली। १. वार्षिक मूल्य उपहारसहित ३) तीन रुपया पेशगी है। वी. पी. तीन रुपया एक आनेका भेजा जाता है। २. उपहारके बिना भी तीन रुपया मूल्य है। १ जैनतीर्थकरोंका शासनभेद-लेखक, ३. ग्राहक वर्षके आरंभसे किये जाते हैं और बीचसे श्रीयुत जुगलकिशोरजी मुख्तार। ... ३२५ अर्थात् ७ वें अंकसे । बीचसे ग्राहक होनेवालाको २लुभाव या लालच-ले०,श्रीयुत दया उपहार नहीं दिया जाता। आधे वर्षका मूल्य चन्दजी गोयलीय बी ए.। ... ... ३३२ १) रु. है। ३ सुखका उपाय (कविता)-ले०, श्रीयुत ४. प्रत्येक अंकका मूल्य पाँच आने है । जुगलकिशोरजी। ... ... ... ३३५ ५. सब तरहका पत्रव्यवहार इस पतेसे करना चाहिए। ४ जैनलेखक और पंचतंत्र-ले०, मैनेजर-जैनग्रन्थरत्नाकर कार्यालय. श्रीयुत मोतीलालजी बी. ए.। ... ३३६ ५बिधिका प्राबल्य और दौर्बल्य हीराबाग, पो० गिरगांव-बंबई। ( कविता )-श्रीयुत जुगलकिशोरजी । ३४४ प्रार्थनायें। ६ काश्मीरका इतिहास-ले०, श्रीयुत सुपार्श्वदासजी गुप्त बी. ए.। ... ... ३४५ १. जनहितैषी किसी स्वार्थबुद्धिसे प्रेरित होकर निजी ७ शाकटायनाचार्य-... ... ... ३४९ लाभके लिए नहीं निकाला जाता है। इसमें जो समय ८ पुस्तकपरिचय- ... ... ... ३६२ । और शक्तिका व्यय किया जाता है वह केवल अच्छे ९ जैनकर्मवाद और तद्विषयक विचारों के प्रचार के लिए। अत: इसकी उन्नतिमें साहित्य-ले..श्रीयुत मुनिजिनविजयजी। ३७३ हमारे प्रत्येक पाठकको सहायता देनी चाहिए। १० प्रतिदान ( गल्प ) - लेखक, श्रीयुत २. जिन महाशयों को इसका कोई लेख अच्छा मालूम - ज्वालादत्तनी शर्मा । ... ... ... ३८४ हो उन्हें चाहिए कि उस लेखको जितने मित्रोंको ११ अहिंसा परमो धर्मः-ले०, श्रीयुत वे पढ़कर सुना सकें अवश्य सुना दिया करें। लाला लाजपतराय। ... ... ... ३९४ ३. यदि कोई लेख अच्छा न म लूम हो अथवा विरुद्ध १२ विश्वास ( कविता )-श्रीयुत प्रेमी मालूम हो तो केवल उसीके कारण लेखक या हजारीलालजी। ... ... ... ३९८ सम्पादकसे द्वेष भाव न धारण करने के लिए सवि. १३ तीर्थों के झगड़े कैसे मिटें :-ले०, नय निवेदन है। श्रीयुत वाडीलाल मोतीलाल शाह। ... ३९९ ४. लेख भेजनेके लिए सभी सम्प्रदायके लेखकोंको १४ तीन देवियोंका संवाद ( कविता ) आमंत्रण है। -सम्पादक। ले०, श्रीयुत मित्रसेनजी जैन, मेरठ दूसरे उपहारकी सूचना । कालेज। ... ... ... ... ४०३ । दूसरा उपहार अभीतक नहीं दिया गया, इसका १५ विविध प्रसङ्ग- ... ... ४०५ कारण यह है कि जिन लेखक महाशयने उस लिख १६ शिक्षितोंकी उदारता-ले०, श्रीयुत देना कहा है वे अवकाशाभावके कारण अब तक अशिक्षित ... ... ... ... ४१७ लिख नहीं सके हैं। तकाजा किया जा रहा है । ज्यों २७ व्यास और भीष्म- ... ... ४१८ श्रीलिख देंगे. त्यांही उसके छपानेका प्रबन्ध कर १८परोपदेश-कुशल ( कविता )-ले०, दिया जायगा । कागज खरीदा हुआ रक्खा है। एक श्रीयुत मोहनचन्द सिंघई धर्मात्मा सज्जनने इस पुस्तकके छपानेका पूरा खर्च देनेकी स्वीकारता दे दी है। १५ विविध प्रसदारता-ले०, श्रायु. ४१७ लिख नहीं सकारत्याही उसके रखा है । एक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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