Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 06
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 23
________________ fitmIIIIIIIIIImamWITTER मेरा दक्षिण-प्रवास । २९५ Ima m mRMWYiry कानूनके अनुसार उसे बेचनेका किसीको आध- रहे हैं तब भी इसकी पुकार सरकारके कानोंतक कार नहीं है-उसका मालिक भानजा ही होता नहीं पहुंचाते हैं । हमारा अनुमान है कि यदि है । यदि किसीके भानजा न हुआ तो उसकी दक्षिणकनाड़ाके जैनी भाई अब भी न चेतेंगे तो स्थावर सम्पत्तिकी मालिक सरकार होती है। वह दिन बहुत दूर नहीं है जब कि इस प्रान्तके पिताने जो सम्पत्ति अपने परिश्रमसे पैदा की है इतिहास मात्रमें इस बातका जिकर रह जायगा और यदि वह चाहे तो उसे अपने पुत्रको दे सकता कि इधर 'कोई जैन धर्मके पालने वाली जाति है या अन्य कामोंमें खर्च कर सकता है, पर हो गई है और अब उसका नाम भी नहीं है।' उसकी जो पीड़ी-दर-पीडीसे चली आई स्थावर स- इस ' भतपाण्डि-एक्ट । के सम्बन्धमें ऐसी म्पत्ति है उसकी आमदनीको जब तक वह जीता दन्तकथा चली आ रही है कि प्राचीन कालम इस रहे अपने कुटुम्बपालन आदिमें लगाता है, पर प्रान्तमें भतपाण्डि नामका एक बड़ा भारी जैनी उसके मलधनको वह किसी तरह नष्ट नहीं कर राजा हो गया है। उसके बारह लड़के थे। उसने सकता। उसका मालिक है उसका भानजा। एक बार जहाज चलानेका विचार किया और इसी तरह एकके बाद एक मालिक होता उसने एक बड़ा भारी जहाज तैयार करवाया। रहता है। पर मूल सम्पत्ति सदा क्षित जब जहाज समद्र में उतारा गया और चलनेकी रहती है। और किसीके यदि भानजा न हुआ तैयारी की गई तो जहाज वहीं अटक गया । उसे तो फिर वह सम्पत्ति सरकार जप्त कर चलाने के लिए बहत प्रयत्न किये गये पर वह लेती है । इस काननसे हजारों घरोंकी सम्पत्ति किसी तरह न चला। देवी-देवताआसे बहुत सरकारके खजानेमें पहुंच गई है और इस तरह प्रार्थनायें की गई-बहुतसी शपथें ली गई, पर जहाकुटुम्बके कुटुम्ब बरबाद हो गये हैं। ज न चला । रातको भूतपाण्डि इसी चिन्तामें ऐसा ही कानून वहाँकी एक शूद्र जातिके पड़ा हुआ था। उस समय किसी यक्षने आकर लिए है । पर उसकी दशा कैसी है, इसका कहा “ तू मुझे नर-बलि भेट चढ़ा तब मैं तेरा ठीक पता नहीं । यह बला जैनियोंने जहाज चलने दूंगा।" भूतपाण्डिने उठकर यह अपने आप ही सरपर उठाई थी । कहा सब हाल अपनी स्त्रीसे कहा और उससे जाता है कि भानजेके मालिक होनेकी अपने बारह लड़कोंमेंसे एक लड़केको ‘यक्षरीति बहुत पुरानी है। सरकारने जब अपना बलि' के लिए माँगा। उसकी स्त्रीने साफ इंकार नया कानून जारी किया तब उसने जैनसमा- कर दिया । उसने कहा-मुझे तुम्हारे धन-दौलतजसे पूछा था कि तुम्हें इस कानूनमें कोई उज्र की इच्छा नहीं, मैं अपने लड़कोंको किसी तो नहीं है ? परिस्थिति और परिवर्तनके न तरह न दूँगी । स्त्रीका यह सूखा उत्तर पाकर समझने वाले स्वार्थियोंने कह दिया कि हमें इसमें भूतपाण्डि बड़ा निराश हुआ। उसने अपनी कोई उज्र नहीं। बस, तसे यह बला जैनोंके स्त्रीको बहुत कुछ समझाया-बुझाया, पर सब सिरपर पड़ गई, जिसका भयंकर परिणाम वे आज व्यर्थ गया । कोई उपाय न देखकर दुःख तक भोगते जाते हैं और न जाने कबतक और पश्चात्तापके मारे वह स्वतः अपनी बलि भोगना पड़ेगा। इस बातका अत्यंत खेद है कि देनेको तैयार हो गया । यह बात भूतपाण्डियहाँके भाई इस भयंकर प्रलयको आँखोंसे देख की बहनको मालूम हुआ । बहनका अपने भाई Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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