Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 06
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 31
________________ HAIRAMATIBAIRILD हिन्दी। ३०३ उनमें काले पत्थरकी और खड़ासन प्रतिमायें फिर वहाँसे हुबलीका टिकट लिया। हुबलीमें अधिक देखनेमें आई । कहीं कहीं बैठी प्रतिमायें जैनियोंके कोई ३५० घर हैं। नया जैनमन्दिर भी हैं, पर उनमें अर्द्धपद्मासन-एक पाँव ऊपर तैयार हो रहा है। यहाँसे हुटगीका टिकट लिया । रखे हुई ही-ज्यादा हैं । उत्तरप्रान्तमें ऐसी हुटगीमें गाड़ी बदलनके लिए कोई तीन घंटा अर्द्धपद्मासन प्रतिमाओंका नाम भी नहीं है। रहना पड़ा । यहाँसे पाँच बजे दिनको मदरास इसका कारण नहीं जान पड़ता। मेलमें सवार होकर सबेरे साढ़े छह बजे बम्बई यहाँसे बैलगाड़ी द्वारा टिपटूर आया । और पँहुच गया। हिन्दी। . [ले-श्रीयुत रामचरित उपाध्याय ।] [१] छत्र-धारिणी देख तुझे कब, हम सुखसे सोवेंगे हिन्दी। तेरे विघ्नोंके बादल कब, तितर वितर होवेंगे हिन्दी ॥ भारतभरकी प्रिय माता है, मनमें शोच न कर तू हिन्दी। ईश्वर तेरा भी त्राता है, दुष्टोंसे मत डर तू हिन्दी ॥ [३] सच कहता हूँ भारतका तब, उन्नति-कमल खिलेगा हिन्दी । सब भाषाओंसे तुझको जब, ऊँचा स्थान मिलेगा हिन्दी ॥ तेरे सुखद न्यायका दिन वह, बहुत शीघ्र आवेगा हिन्दी । धैर्य सहित उद्यम करती रह, समय पलट जावेगा हिन्दी ॥ तेरी सुन्दरता सच्चाई, किसे न अपनाती है हिन्दी। या तेरी है व्यर्थ बडाई, अब तक दुखपाती है हिन्दी ॥ फिरभी अपने सत्व सभी तू, निश्चित है पावेगी हिन्दी। घर घरमें सोल्लास कभी तू, पूजित हो जावेगी हिन्दी ॥ . [७] कर्मवीर तेरे उद्धारक भारतमें उपजेंगे हिन्दी। तेरे सुख समृद्धिके हारक, हठको छोड़ भजेंगे हिन्दी ॥ सबको दुख मिलता है जगमें, सुख पानेके पहले हिन्दी । इसी लिए निज उन्नति-मगमें, काँटोंके क्षत सहले हिन्दी ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48