Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 06
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 41
________________ विद्यासागर से जो बड़े बूढ़े होते थे उन्हें ये बड़ी आदरकी दृष्टिसे देखते थे । जब ये संस्कृत कालेज के प्रिंसपल हुए तो कालेजके वृद्ध क्लार्क जोकि इन्हें लड़कपनसे जानते थे और जिन्होंने कि इन्हें एक बार, इनके पिता - के कोप से बचाया था, इनके अपने समीपसे निकलने पर इन्हें सम्मान देने के निमित्त वे अपनी कुर्सीसे उठ खड़े हुए; परन्तु प्रिंसपलने बुद्ध महाशयको उनको कुर्सी पर आरामसे बिठाकर कहा, “मैं आपका अभी बालक ईश्वर ही हूँ; मेरे साम्हने खड़े होकर, कृपया मेरे हृदयको दुखित मत कीजिए । " इस सभ्य और दयालु महापुरुषका देहान्त सन् १८९१ ई. में हुआ । इनकी मृत्युपर यूरोपीय तथा देशी लोगोंने एकसा शोक प्रगट किया । जब लोगोंने यह हृदयविदारक समाचार सुना कि, उनका एक दयालु और प्रिय सुहृद उनसे हमेशा के लिए जुदा हो गया तो हज़ारों लोग छाती फाड़ फाड़ कर रोए । ARA TARA! पठन क्योंकर हो ? BnsensenssØØØN लेखक, बाबू जुगल किशोर, मुख्तार । प्रथम तो ' पठनं कठिनं प्रभो । सुलभ पाठक - पुस्तक जो न हो । हृदय चिन्तित देह सरोग हो, पठन क्योंकर हो, तुम ही कहो ? रामनाथ । Jain Education International ६ रामनाथ ३१३ ( ले०, पं० शिवसहाय चतुर्वेदी ) रामनाथका स्वभाव संसार में होनेवाली नित्यकी घटनाओंको खूब बारीकीके साथ देखनेका नहीं था । तो भी उनको बिलकुल लापरबाहीके साथ उड़ाकर उसके दिन निश्चिन्तता पूर्वक नहीं कटते थे । रामनाथके माता पिता वह जब छोटासा था तभी मर गये थे, इस कारण उसका लालनपालन मामाके घर हुआथा । अब भी वह वहीं रहता था । छुटपन से दूसरे के घर दूसरेके अनुग्रह से पाले-पोसे जानेपर भी उसके स्वभावका तेज हीनता के मध्य में बिलकुल नहीं ब था । किसी परान्नभाजी - दूसरे के टुकड़े तोड़ने वाले मनुष्यकी स्वाधीनताकी स्पर्धा संसारकी दृष्टिसे अच्छी नहीं समझी जाती । इसी कारण रामनाथको कोई अच्छी दृष्टिसे नहीं देखता था । जो उसके मुख पर नहीं कह सकतेथे, वे पीठ पाछे, और जो उसके सामने खुले शब्दों में कहनेकी क्षमता रखते थे वे समयानुसार मौके मौके पर रामनाथको समझाने की चेष्टा करते थे, परंतु फल कुछ न होता था, उसकी लापरवाही और भी अधिक बढ़ जाती थी । For Personal & Private Use Only भय और शासन क्या वस्तु है इसे रामनाथ बिलकुल नहीं जानता था उसके कोषमें इन शब्दों का नाम भी न था; इस कारण खुशामद करके भी कोई उससे एक भी काम नहीं करा सकता था। उसके स्वभाव में एक ऐसी दृढ़ता थी कि वह कठिन से कठिन प्रसंग पर भी कभी एक कौंड़ी व्यर्थ खर्च नहीं करता था । जहाँ उसका कोई मतलब या काम होता था वहाँ वह ठीक समय पर पहुँचता था, और काम निकल जाने - www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48