Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 06
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 46
________________ ३१८ SAHLIBABALIBHIBALIBAILY जैनहितैषी। अनुरोध नहीं बल्कि आदेशकी तौरपर दृढ़स्वरसे कहा-" मालिक ५ बजे आते हैं, या तो जबतक कहा-“ अब गरीबोंको तंग करनेसे बाज आओ, बैठौ या लौट जाओ, फिर आना ।" इस झूठे मामलेमें गवाही मत दो।" रामनाथ न तो बैठा और न लौटा,-वह मालिन वेषधारी अपरिचित व्यक्तिकी इस गर्जकर बोला-" तुम गवाह हो ? शेखकल्लू ! बड़ी भारी धृष्टतासे चकित होकर नवयुवक तुम जानवरका चमड़ा पहिनकर जानवरके पास गुमास्तेने शीघ्र ही सूखेपनसे कहा-" तुम कौन नायवी करनेके लिए आये हो ? जीने मरनेकी हो ? क्या पागल तो नहीं हो गये ? ” परवा न करके हाथके ज़ोरसे गरीबोंके गलेपर __रामनाथने उसकी ओर नहीं देखा, उन्होंने शेख छुरी चलाओगे ! भोजनके बिना जिन अभाकल्लूको दृढ़ताके साथ फिर अपना वक्तव्य सुना गोंके प्राण छटपटा रहे हैं, जो बरसामें भीग करके, दिया, और जब शेखइमामी अपने धर्मावतार धूप-गरमीमें जलकर और रोग-शोकमें संतप्त मामाके सामने रोते रोते धर्मकी दोहाई, रक्तका रहकर भी रातदिन परिश्रम कर करके तुम्हारे सम्पर्क, नाड़ीकी एकता आदि आध्यात्मिक- खजानेको भरते हैं-जिनके परिश्रमसे पैदा किये तत्त्व लेकर प्रार्थना करनेको उद्यत हुआ, तब हुए धनको-रक्तको-साल दरसाल किस्तके रूपमें रामनाथने सिंहकी तरह गरज कर उसे इस तरह चूस कर तुम्हारी चरबी बढ़ गई है-उन बेचारोक दिया कि इमामीको फिर एक वाक्य कहने रोंको निदर्य होकर पीसनेके लिए गाँठका पैसा की भी हिम्मत न हुई। खर्च करके मुकद्दमा चलाओगे ? तुम्हारा सत्याशेखकल्लू रामनाथको अच्छी तरह जानता नाश हो और तुम्हारे जमीदारका सत्यानाश था एक समय वह उससे डरता भी बहुत था- हो । शेखइमामी! चलो, आओ, देखा जायगा ये परन्तु इस समय माथा गरम और पेटे भूखा होने- क्या करते हैं ? यहाँ सभी जानवर नहीं बसते के कारण मर्मघाती वचनोंकी हूलसे उसका हैं, आदमी भी हैं ।" चित्त जल उठा उसने अपने स्वभावसिद्ध गुणके शेख इमामीको साथ लेकर रामनाथ जल्दीसे अनुसार मृदुवचनोंसे इमामीको कई तीक्ष्ण चला गया। और मान्तिक बातें सुनाई और बुद्धिमान् राम- शेखकल्ल उठकर खड़ा होगया, नवयुवक नाथ बाबूको अनधिकार-चर्चा छोड़कर अपने गमास्ता दलीलको हाथमें लिए हुए एक ओर चरखामें तेल डालने-अपने कामसे प्रयोजन बैठ गया। बाहर दरबाजेपर खड़े हुए पहरेवाले रखनेके लिए उपदेश दिया । रामनाथने अस- अपनी अपनी लाठियोंको संभाल कर एक दूसहिष्ण होकर कहा-“ हम बातको लेकर रको मुँह ताकने लगे। झगड़ा करनेके लिए नहीं आये हैं- कामके लिए आये हैं।" बहुत दौड़-धूप और परिश्रमके बाद शेख शेखकल्लूने अत्यंत उदासीनतासे आँखोंका इमामीके मुकद्दमेंका अंत हुआ । रामनाथने चस्माँ निकालकर मधुर वचनोंसे कहा-“ठीक अपनी गाँठका रुपया खर्च करके अच्छे अच्छे है, किन्तु यह बात तो मेरे हाथकी नहीं है, वकील मुख्तारोंको लगाकर बड़ी सरगरमीसे मालिकके हाथकी है-उन्हें आने दो।" मुकद्दमा लड़ा । फल यह हुआ कि शेख नवयुवक गुमास्तेने धीरे और शीघ्रतास' इमामी बेकुसूर कह कर छोड़ दिया गया, और Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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