Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 06
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 48
________________ 220 mmmmm जैनहितैषी की पूंछको ऐंठ कर चौड़े रास्तेसे गाड़ीको घरकी चीत कर रहा है , पडौसी इमामीको बुलाने और दौड़ाने लगा-गाड़ी घरके दरवाजे पर आया है। आकर खड़ी हो गई। ___रामनाथने शीघ्र ही कहा-" इमामी !" ___ हाथमें बेग और काँधे पर ट्रॅक रक्खे हुए इमामीने हाथ जोड़कर कहा- हुजूर / " इमामीने रामनाथके साथ घरमें प्रवेश किया / रामनाथ विना कुछ कहे सुने इमामीको साथ चांडाल-बधूने घूघट खींचकर दूरसे ज़मीनपर लेकर कल्लूके घरकी ओर चलने लगा। पड़ोसिर रखके रामनाथको प्रणाम किया। रामनाथ सी भी विस्मित होकर पीछे पीछे हो लिया / उससे कुशल पूछकर भीतर चला गया। उनके पहँचनेके कुछ समय पहले ही शेख किसीने बाहरसे इमामीको पुकारा / वह ट्रंक कल्लकी मृत्यु हो गई थी, स्त्री शोकसे व्याकुल रखकर बाहर चला गया। होकर पतिके पैरों के पास रोरो कर लोट रही रामनाथने भीतरकी ओर नजर डाली / थी। रोगी और दुबला तीन वर्षका बालक इस लक्ष्भीके नेत्र पतिदर्शनके लिए उत्सुक हो रहे दुखका कारण कुछ न समझकर माताके रोनेके थे। मधुरहास्य और सुन्दर वस्त्रभूषणोंसे सुस- भयसे मृतक पिताके वक्षःस्थलपर पड़कर रोरोकर ज्जित लक्ष्मी पतिको देखते ही चूड़ियोंके शब्दके सिसक रहा था। साथ माथेका कपड़ा खींचकर एक ओर सरक रामनाथने जाकर जल्दीसे बच्चको उठा गई / स्त्रियाँ कितनी ही पुरानी क्यों न हो-बहुत लिया / बच्चा रोते रोते थक गया था, कुछ दिनोंके बाद पतिको देखने पर लज्जा करती ही शान्त होते ही उसने पीनेके लिए पानी माँगा। हैं। रामनाथने आगे बढ़कर अपने दोनों हाथोंसे रामनाथ उसको गोदमें लेकर जल्दी जल्दी स्त्रीको अपनी ओर खींचकर पूछा-“अच्छी हो?" अपने घर आया और लक्ष्मीसे बोला-" घरमें लक्ष्मीका गला भर आया, वह शीघ्र ही दूध है ? यदि न हो तो इसे कुछ पानी बोली-" और तुम ? " ही पिलाओ।" ठीक उसी समय पास ही रोनेकी आवाज लक्ष्मी एक ग्लासमें दूध ले आई और उसने सुनाई दी-रामनाथने चकित होकर स्त्रीको छोड़- बच्चेको बड़े स्नेहके साथ रामनाथकी गोदसे कर कहा-" कौन है ? " अपनी गोदमें ले लिया। लक्ष्मीने मलिन मुखसे कहा-"शेखकल्लू बहत रामनाथने कुछ संकोचके साथ कहा-" मैं दुःखी है, जब इमामी स्टेशनको गया था उस मर्देको छकर आया हूँ।" समय कोई उसको बुलानेके लिए आया था लक्ष्मीने स्वामीको प्रणाम करके और उनके परंतु.........।" पैरोंकी रज माथेपर लगाकर कहा.-"तुम पवित्र रामनाथ शीघ्र ही वहाँसे चला गया / बाहर हो !" जाकर देखा कि इमामी एक पड़ौसीसे बात (प्रवासीसे अनुवादित) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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