Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 06
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 47
________________ LITEmmmmmunimum रामनाथ। ३१९ यहाँ तक कि काटे हुए पेड़ोंके मूल्यस्वरूप जो इधर जमीदार बाबूको मुकद्दमा हार जानेके एक रुपया दशआना दंड देनेका विधान हुआ कारण बड़ी लज्जा हुई; वे अपमानके बोझसे दबसे था वह भी प्रधान गवाह शेखकल्लूके दोषसे गये । शेखकल्लू स्वास रोगसे पीड़ित रहता ही रद्द होगया । गवाहके कठहरेमें खड़े होकर एक था,इधर कई दिनोंसे बीमारी बढ़ जानेके कारण वार उसके मुँहसे “ हाँ" के बदले 'न' निकल उसे लाचार होकर नौकरी छोड़ देना पड़ी । बते ही यह आपत्ति खड़ी हुई । फिर वकीलोंकी हुदिन व्यापी रोगकी ताड़ना और मानसिक जोरदार बहससे सब मामला बिगड़ गया और दुश्चिन्तोंओंके कारण शेखकल्लूका शरीर सूखकर शेखइमामी बिलकुल बे-दाग छोड़ दिया गया। काँटा हो गया था। अब वह किसीसे मिलता जुलता शेखइमामीके मुकद्दमेंसे छुटकारा मिलनेके नहीं हैं, अपने घर चारपाई पर पड़ा रहता है। दूसरे दिन ही रामनाथकी परीक्षाका फल प्रकाशित " उसके मकानके पाससे जमीदारके सिपाही जब हुआ । रामनाथ प्रथम नम्बरमें पास हो गया। किसी आसामीको मारते पीटते हुए लेजाते हैं इस संवादको सुनते ही वह विशेष प्रसन्न न हो । " तब उन लोगोंके सकरुण रोदनको सुनकर वृद्ध सका, क्यों कि इस समय वह ऋण चकानेकी शखकल्लू आखाम पानी भरकर भगवानका नाम चिन्तामें लगा हुआ था। जब तक एक काम लेने लगता है। उसके सामने रहता था, तब तक वह उसी कामको पूर्ण उद्यमके साथ करता था: एक काम- छह महीनके बाद रामनाथने सब ऋण चका को पूरा किये विना वह किसी नई चिन्ता या दिया और कुछ पैसा भी अपनी गाँठमें कर लिया। संकल्पको अपने मनमें स्थान न देता था । उसने लक्ष्मीको लिखा-" मैं शीघ्र ही घरको बडी मिहनतके बाद छत्तीसगढकी एक आता हूँ।" रियासतमें हाईस्कूलकी हेडमास्टरी मिली- शेखइमामीने उत्साहित होकर तीन चार तनरव्वाह २००) थी । नौकरी लगते ही एक दिन परिश्रम करके मकानके चारों ओरका घास दिनका विलम्ब न करके रामनाथ उसी दिन छ- कूड़ा छीलकर साफ़ कर दिया । नियत दिनको त्तीसगढको रवाना हो गया। घर जाकर स्त्रीसे कई जगहोंसे नाना तरहकी तरकारियाँ लाकर मिलने और रोने-गाने द्वारा विदाके आडम्बरको रख दी और ग्वालोंसे दूध दहीका प्रबंध कर बढ़ानेकी उसकी बिलकुल इच्छा न थी, इसलिए दिया । सफ़ेद धुली धोती और सिरपर लाल चांडालकी स्त्रीकी देखरेखमें अपनी स्त्रीको रख- साफेको बाँध कर शेखइमामी यथा समय कर और इमामी आदिसे मौखिक खोज खबर स्टेशन पर बाबूसाहबको लेनेके लिए गाड़ी लेते रहनेकी कह कर वह चला गया ! इधर लेकर पहुँच गया ।। उसके जानेसे नाइटस्कूल बंद हो गया। ट्रेन आगई । बाबूरामनाथ एक हाथमें बेग और कृतज्ञ इमामी दोनों वक्त घर आकर मातृ दूसरेमें ट्रंक लिये हुए गाड़ीसे उतरे । उन्होंने स्वरूपिणी लक्ष्मीकी खोज खबर ले जाता था और उतरते ही इमामीसे कुशलता पूछी । इमामीने प्रतिदिन रातको परिवार सहित आकर, आप सलाम करके बड़े उत्साहके साथ गांवका बाहर मकानमें सो रहता और स्त्रीको लड़कों आद्योपान्त संक्षिप्त वृतान्त कह सुनाया। रामनाथ सहित भीतर सोनेके लिए भेज देता था। गाड़ीमें आ बैठे-इमामी विचित्र शब्दके साथ बैलों Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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