Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 06
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 34
________________ A mAILITARATHIMALARI जैनहितैषी प्रचलित हैं उनका निकास भारतवर्षसे ही हुआ भाषासे सिरिया देशकी भाषामें इस ग्रंथका है, और डोहनार्टने तो यह भी साबित कर अनुवाद किया और फिर सन् ७५० ईसवीके दिया है कि हबशी ( नीयो ) जातिके गुलाम लगभग अब्दुल्ला इबल मुकफकाने इसका अनुइन कहानियोंको आफ्रीकासे अमेरिका ले गये। वाद आरबी भाषामें कर डाला । अब्दुल्लाके उपर्युक्त विद्वानोंने बैनफेकी इस प्रधान खोज अनुवादसे फिर इस ग्रंथके योरोपीय भाषाओंमें पर विश्वास ही नहीं किया, किन्तु उन्होंने बहुतसे अनुवाद हुए, जिसके द्वारा पश्चिममें इस उसकी सत्यता कई नई बातोंमें भी प्रमाणित ग्रंथका सब ग्रंथोंसे आधिक प्रचार हो गया। कर दिखाई। ___ यह बात आजसे बहुत पहले मालूम हो ___ इस निबंधके लेखकने एक लेखमें (जो चकी थी कि “ कलैलह-दमनह" का निकास जैन शासन के दीपमालिकाके विशेष भारतवर्षसे हुआ है। सिलविस्ट्रे डी सेसीने इस अंकमें प्रकाशित हो चुका है ) यह दिखाया ग्रंथके इतिहास और प्रचारका स्पष्ट वर्णन लिखा है कि ईसाई धर्मकी पुस्तकोंमें, बाईबिलमें और था और अन्य विद्वानोंने १९ वीं शताब्दाम परानी और नई दोनों तरहकी तौरेतोंमें भी इस वर्णनमें कई नई खोजें बढ़ाई। भारतवर्षका बहुत कुछ प्रभाव मौजूद है। _ परन्तु, इस महत्त्वपूर्ण ग्रंथका निकास भारअरबी और फारसी सहित्य भारतीय-कहा- तवर्षसे कैसे हआ और अपने ही देशम नियोंसे भरे पड़े हैं, और अब यह प्रमाणित हो , गत १. सदियों तक इसका क्या हाल रहा, इन दो विचुका है कि आरव्योपन्यास, जो अरबीभाषामें । - षयोंके संबंधमें लोगोंको बहुत कम बातें मालूसबसे प्रसिद्ध कथा-ग्रंथ है और जिसका अनु सका अनु- म थीं। उस समय इस ग्रंथकी छपी हुई आवृवाद कई भारतीय भाषाओंमें हो चुका है,- त्ति केवल एक ही थी। यह आवृत्ति कोजगाटेनप्रधानतः भारतवर्षसे ही निकला है। 1 ने सन् १८४८ ईसवी में प्रकाशित कराई थी। ___ समस्त मध्य-कार्लमें ईसाई संन्यासी और . मुझे खेदके साथ कहना पड़ता है कि यह आवृपादरी अपने धर्मोपदेशोंमें बहुतसी कथाओं " ति तीन भिन्न भिन्न आधारोंसे बहुत ही बुरी और निदर्शनोंका प्रयोग किया करते थे। ये तरह तैयारकी गई थी। बैनफेकी कई त्रुटिकथायें यूरोपकी लगभग सभी जातियोंके यहाँ । योंका एक कारण यह भी है कि उन्होंने लैटिन और ( यूरोपीय ) देशी भाषाओंके अपनी खोजोंमें इसी आवृत्तिको मूलाधार माग्रंथों में अब तक मिलती हैं । उस समय यूरोपके ना था। चूँकि बैनफेके समयमें योरोप वाले बहुत कम लोगोंको यह मालूम था कि वे जैनोंको बौद्धोंका एक संप्रदाय मात्र समझते भारतीय-कहानियोंका प्रयोग करते थे। इसलिए बैनफेने पंचतंत्रके मूल लेखकको इन कथा ग्रंथों में सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ कलैलह- बौद्ध ठहराया । बैनफेने समझा कि ' कलैलहदमनह है। फारसके हकीम बरज़ाने इस ग्रंथका दमनह किसी एक ग्रंथका अनुवाद है और इसअनुवाद मूल संस्कृतसे पहलवी भाषामें सन् का कर्ता भी कोई एक ही मनुष्य है, परन्तु अ५७० ईसवीके लगभग किया; बडने पहलवी सलमें यह ग्रंथ कई भिन्न भिन्न ग्रन्थोंका संThe Arabian Nights, अर्थात् अलिफलैला। ग्रह है। अपनी आवृत्तिके विषयों कोज़गार्टिन१ ईसवी सन् ५०० से १५०० तक। का कथन है कि यह बौद्धोंके एक मूल Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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