Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 06
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 37
________________ KAILAIMIMILITATARRImaRITICID जैन लेखक और पंचतंत्र ३०९ बौद्धधर्मानुयायी न था, किन्तु वह एक वैष्णव पद्य-अंश दिया हुआ है और उसमें एक अकेला था और मालूम होता है कि वह काश्मीरका गद्य-वाक्य भी दिया है, जिसको इस संक्षिप्त रहनेवाला था। उसका उद्देश्य राजकुमारोंको गद्य-संस्करणके नकल करनेवालेने भूलसे अर्थशास्त्र अर्थात् राजनीतिशास्त्र सिखलाना था। श्लोक समझ लिया था, परन्तु वह वास्तवमें इसी लक्ष्यसे उसने एक प्रख्यायिकाके रूपमें कौटिल्यके अर्थशास्त्रका एक गद्य-वाक्य है। पाँच तंत्र लिखे और उनके बीच बीचमें वि- इस बातसे यह 'मालूम होता है कि नैपाली विध ग्रंथोंमेंसे श्लोक उध्दत करके रख दिये संस्करणके मूलमें और इस मूलमें यह भेद है और कहीं कहीं कौटिल्यके अर्थशास्त्रमेंसे, कि इस संस्करणमें बहुतसे अंश ऐसे भी हैं जिसे पंडित आर. शर्मा शास्त्री, बी. ए. ने सौभा- जो हितोपदेशमें मिलते हैं । परन्तु श्लोकों ग्यवश खोज कर हालमें ही प्रकाशित किया है, और कथाओंकी संख्या और क्रममें नेपाली गद्य-वाक्य भी उध्दृत किये। इसी कारण पंचतंत्रका मूल संस्करण दक्षिण-भारतके पंचग्रंथकारने अपने ग्रंथका नाम 'तंत्र-आख्या- तंत्रके मूल संस्करणसे संपूर्ण समानता रखता है । यिका' रक्खा । बैनफेको जो हस्तलिखित उसके लेखकने पहले और दूसरे तंत्रोंके क्रमको प्रतियाँ मिलीं उनमें कुछ कथायें और श्लोक केवल उलट दिया है; हितोपदेशके कर्ता नाराबाहरसे मिलाये हुए हैं, परन्तु फिर भी यह यणने भी ऐसा ही किया है। आसानीके साथ दिखाया जा सकता है कि मैं यहाँपर विस्तारपूर्वक नहीं लिख सकता शेषांश मल ग्रंथ है और इसी मलमेंसे कलै- और न मैं उन प्रमाणोंको दोबारा लिख सकता लह-दमनहके शुरूके पाँच अध्यायोंका और हूँ जो मैं अपनी उपर्युक्त पुस्तकमें दे चुका हूँ। उत्तर-पश्चिमी भारतकी पंचतंत्र नामक संक्षिप्त यहाँपर इतना कहना काफी है कि उत्तरीआवृत्तिका प्रादुर्भाव हुआ है। पश्चिमी-संक्षिप्त-संस्करण, जिसके कर्ताका अ. कलैलह-दमनह नामक पुस्तकके विषयमें स्तित्व कालिदासके बाद मिलता है, क्योंकि मैं यहाँ कुछ नहीं कहता; क्योंकि जिस किसी- उसने कुमारसम्भवके द्वितीय सर्गका ५५को इस प्राचीन पहलवी आवृत्ति और उसके वाँ श्लोक उद्धृत किया है, उत्तरी-पश्चिमी भारतसे और बंगालसे पूर्णतया बहिष्कृत कर रूपान्तरोंका हाल जाननेकी जिज्ञासा हो वह दिया गया । बंगालसे इसे नारायण पंडितकृत सुगमताके साथ कीथ-फाकनरकी पुस्तकको हितोपदेशने बहिष्कृत कर दिया । नारायण जिसका जिक्र ऊपर आ चुका है-पढ़ पंडित बंगालमें ईसवी सन् ८०० और १३७३ सकता है। (जो सबसे प्राचीन उपलब्ध हस्तलिखित प्रतिउत्तरी-पश्चिमी-भारतका संक्षिप्त संस्करण की तारीख है ) के बीचमें विद्यमान होंगे, जिसका नाम पंचतंत्र है, अब उत्तरी-पश्चिमी १. विण्टरनिजने उल्लेख किया है कि इस ग्रंथमें भारतमें नहीं मिलता । हमको इस संस्करणका । 'दनिार' शब्द कई बार आया है। दिनेरियस पता दो स्थानोंसे मिलता है, एक तो दक्षिण ना नामक रोमन सिक्केको लैटिनमें दीनार कहते हैं। भारतमें इस संस्करणकी हस्तलिखित प्रतियाँ सर्वत्र शिलालेखोंसे मालूम होता है कि ईसाकी दूसरी मिलती हैं और दूसरे इसकी केवल एक हस्त- सदीके पहले ही 'दि ' की इ ( लघु ) ई ( दीर्घ) लिखित नेपाली प्रति उपलब्ध है जिसमें केवल में बदल गई। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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