Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 06
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 30
________________ जैनहितैषी देखी गई पर निर्माण-सुन्दरतामें इस मूर्तिने है । अखण्ड एक ही पत्थरसे यह बनाई गई है। सबका नम्बर लेलिया है । मैसूर नरेश तो वर्ष बड़ी ही दिव्य प्रतिमा है । इस प्रतिमाके चारों भरमें कोई दो तीन वार इस प्रतिमाको देखनेको ओर जो दालान है उसके सामनेके दालानको आते हैं, ऐसा सुना जाता है। छोड़कर शेष तीन दालानोंमें और भी बहुतसी प्रतिमायें हैं । वे सब ही काले पत्थरकी हैं । ऊँचाई यदि हृदयके विरुद्ध कहना पाप हो-अ- उनकी ३ फीटसे ५ फीट तककी है । उनमें नुकूल कहना नहीं, तो मैं कह सकता हूँ कि खटा ता म कह सकता हूक खड्गासन प्रतिमायें ही ज्यादा हैं। इस प्रतिमाके दर्शनका जो महत्व मुझे अनुभव इस पहाड़के सामने ही एक दूसरा छोटा हुआ उतना सम्मेदशिखर और गिरनार जैसे । पहाड़ है। उसकी चढ़ाई बहुत थोड़ी है । इसे महान् तीर्थोके दर्शनकर भी न हुआ । वहाँ महत्व १ चन्द्रगिरि कहते हैं । इस पर कोई सोलह मन्दिर है तो सिर्फ इतना कि वह निर्वाणभूमि है। ' हैं। उनमेंसे दो तीन मन्दिरोंके चित्र 'जैनसिद्धापर इसके सिवा वहाँ जो हम लोगोंके लिए पवि - न्तभास्कर' में निकल चुके हैं। एक मन्दिरमें त्रताके एक महान् आलंबनकी जरूरत है वह श्रीपार्श्वनाथकी खड्गासन प्रतिमा कोई दस फीट आलम्बन वहाँ नहीं है । और यहाँ वह आलंबन हाल ऊँची है । यह प्रतिमा भी बड़ी सुन्दर है। है और यही कारण है कि इस दिव्य प्रतिमाके - पाँचवें श्रुतकेवली श्रीभद्रबाहु स्वामीके स्वर्गदर्शन कर जो शान्ति-लाभ होता है वह अन्य वासकी गुहा इसी पहाड़ पर है । गुहा बहुत जगह नहीं होता । मेरे हृदयमें भावना हुई । हुई ही छोटी है। उसमें दो चरणपादुकायें हैं। यहाँसे कि यह प्रतिमा जैनधर्मके इतिहासकी एक । थोड़ा और बढ़कर नीचा उतरनेसे एक चिरकाल तक स्थिर रहनेवाली कीर्ति है। जैनी - " तालाब मिलता है । एक जैनमन्दिर यहाँ भी लोग जो प्रतिवर्ष लाखों रुपया तीर्थोके झगड़ोंमें : है । इसमें पार्श्वनाथस्वामीकी पद्मासन सफेद बरबाद करते हैं क्या ही अच्छा हो यदि वे . प्रतिमा बड़ी सुन्दर है । यह प्रतिमा कोई चार उस रुपयेको उधरसे बचाकर इस प्रतिमाकी । फीट ऊंची है। रक्षाके लिए खर्च करें और इस छोटेसे पहाड़को, , इन दोनों पहाड़ोंपर प्रत्येक मन्दिरका शिलाजो चारों ओरसे अस्तव्यस्त पड़ा हुआ है, ९. लेख है । उनमें सब मन्दिरोंके बनाने वगैरहका एक दिव्य-स्थान-स्वर्गसा बनादें । मैनें परमात्मासे प्रार्थना की कि “ प्रभो, आप इन वर्त- पूरा पूरा परिचय दिया गया है । इस प्रान्तके जैनधर्मके इतिहासकी एक पुस्तक भी बहुत मानके झगड़ालू जैनियोंको सुबुद्धि दो जिससे - पहले मैसूर गवर्नमेंटकी ये भाई भाई आपसमें न कट-मरकर अपने धन .१९ ओरसे प्रकाशित हो ' चुकी है । उसका नाम है “ इन्स्क्रप्शन्स और समयका सदुपयोग करना सीखें और पवि- चुका । एट दि श्रवणबेलगोल " उसकी कीमत सात त्र जैनधर्मके इतिहासकी नीब सुदृढ़ करनेकी एट रुपया है । उसमें सब शिलालेखोंकी नकल ओर इनका ध्यान जाय।" और गोमटस्वामी तथा अन्य कई मन्दिरों और इस प्रतिमाको गंगवंशीय महाराज राचमल्लके स्थानोंके फोटू दिये गये हैं । इस प्रान्तमें मूडमंत्री और सेनापति चामुण्डरायने प्रतिष्ठित किया बिद्री, कारकल, मेंगलोर, बेंगलोर, मैसूर, श्रवणहै । यह खुले स्थानमें है और सफेद पत्थरकी बेलगोला आदि जितने स्थानोंके दर्शन किये, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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