Book Title: Jain Hiteshi 1916 Ank 06
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 26
________________ २९८ लिया जाता है, गुपचुपकी ईश्वर जाने । अब मैं आपने संग्रह कर रक्खी हैं और उन्हें बड़े प्रेमसे मूडबिद्रीसे फिर आगे बढ़ता हूँ। पढ़ती हैं । बेंगलोर बड़ा शहर है । शहर और छावनीकी आबादी मिलकर कोई दो लाखके मूडबिद्रीसे गाड़ी द्वारा मीजार, कलमुंडकुर लगभग है । मैसूरप्रान्तकी राजधानी इसे ही आदिमें अपने मित्रोंके यहाँ दो दो, चार चार कहना चाहिए । वहाँका सब राजकीय काम दिन ठहरता हुआ मैं मेंगलोर आया। मूढबिद्रीसे यहीं होता है । यहाँ कच्चा पक्का गोटा बहुत मेंगलोर लगभग २४ मील है । यह बड़ा बनता है। शहर है। इधर ईसाइयोंका बड़ा जोर है । यहाँ उनके कालेज स्कूल वगैरह सब हैं। यहाँ श्वेताम्बर जैनोंका भी एक मन्दिर है कनाड़ाप्रान्तमें चाँवल बहुत पैदा होते हैं और और उनकी ग्रहसंख्या भी अधिक है। ये सब बारहों महीने खाये जाते हैं । इधर काजकली, प्रायः मारवाड़ी हैं और व्यापारके लिए यहाँ नरियल, सुपारी, जहरीकचुले आदि बहुतसी आकर बसे हुए हैं । इनकी कपड़े, बर्तन, सराफी चीजें पैदा होती हैं। ये चीजें भारतके अन्य आदिकी बड़ी बड़ी दूकाने हैं। ये लोग बडे प्रान्तों में इधरहीसे जाती हैं। मेंगलोरमें दो जैन- हिम्मतवान हैं और व्यापारके लिए भारतके हर बोर्डिंग और एक जैनमन्दिर है । मन्दिर बड़ी हिस्सोंमें बसे हुए हैं । इसी कारण इनमें बड़े बड़े अव्यवस्थामें है । इतने बड़े शहरमें जैनियोंका धनवान् भी हैं। कूपमण्डूककी तरह घरहीमें रहनेसिर्फ एक घर है । एक बोर्डिंगमें कोई १५-२० वाले कायर दिगम्बर भाइयोंको इनके द्वारा इस विद्यार्थी हैं और दूसरेमें सात । दोनों बोर्डिंगमें विषयकी शिक्षा लेकर बाहर पैर बढ़ाना चाहिए। एक एक विद्यार्थी एफ. ए. में पढ़ते हैं और आर्थिक दशा व्यापारहीसे सुधर सकती है। बाकी कोई पाँचवी क्लासमें, कोई छटीमें और विद्वान् धरणेन्द्र पंडित यहीं रहते थे। मेरे कोई सातवींमें । नये बोर्डिंगके बनानेवाले एम्. पहुँचनेके एक महीने पहले उनका स्वर्गवास हो नोमिनाथ पड़िवार बड़े अच्छे स्वभावके और उदार चुका था। वे संस्कृतके बड़े अच्छे विद्वान थे। पुरुष हैं । ऐसे कामोंसे आपको बड़ा प्रेम है। इनके पास एक बहुत अच्छा श्रुतभंडार था । पर मेंगलोरसे फिर रेल द्वारा बेंगलोर आया। तलाश करनेसे जानपड़ा कि वह सब अस्तव्यस्त थर्डक्लासकी टिकटके ५।) लगते हैं। यहाँ एक हो गया। उसकी पुस्तकें जिनके हाथ लगीं वे जैनमन्दिर है और दि० जैनोंके कोई २५-३० ही उन्हें दबा बैठे। घर हैं । यहाँके लोगोंमें बड़ी भक्ति है। कोई बेंगलोरसे मैसूर आया । थर्डक्लासके ॥-) त्यागी, महात्मा आता है तो वे बड़ी भक्तिसे लगते हैं । दो जैनमन्दिर हैं । श्रीयुत सेठ वर्द्धउसे आहारादि कराते हैं। जैन-स्त्री-समाजमें मानैया इस प्रान्तमें जैनियोंमें अच्छे धनी और श्रीमती सौभाग्यवती अनन्तम्मा विशेष उल्लेख प्रतिष्ठित सज्जन हैं। आपने एक जैनबोर्डिंग बना योग्य हैं । आप बड़ी ही सरल, धार्मिक प्रकृ- रक्खा है। उसमें कोई ४० के लगभग विद्यार्थी तिकी स्त्री हैं। आपकी मातृभाषा कनड़ी होने पढ़ते हैं। पाँच छह विद्यार्थी संस्कृत पढ़नेवाले पर भी हिन्दीभाषा पर आपका बड़ा अनुराग और शेष अंगरेजी पढ़नेवाले हैं । अंगरेजी पढ़नेहै। कोई सौ सवासौ रुपयोंकी हिन्दीपुस्तकें वाले विद्यार्थियोंके लिए धार्मिक शिक्षाके और Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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