Book Title: Jain Gruhastha ki Shodashsanskar Vidhi
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 13
________________ % 3D शुभाशंसा भारतीय संस्कृति सुसंस्कारों से अलंकृत है। संस्कार मानवजीवन को सुसंस्कृत बनाते हैं। देशविरति और सर्वविरति के संस्कारों को धारण करके व्यक्ति अपना आध्यात्मिक विकास कर सकता है। जैन गृहस्थ और मुनियों से सम्बन्धित संस्कारों को लेकर आचार्य श्री वर्धमानसूरि जी ने आचारदिनकर नामक एक आकर ग्रन्थ की रचना की थी, उनका यह ग्रन्थ जैन परम्परा में संस्कारों से सम्बन्धित विधि-विधान के लिए अति उपयोगी रहा है। किन्तु मूलग्रन्थ संस्कृत और प्राकृत में होने से वर्तमान युग के हिन्दी और गुजराती भाषी जनों के लिए व्यवहारिक नहीं था। समतामूर्ति और समन्वय साधिका श्री विचक्षण श्री जी की शिष्या एवं प्रवर्तिनी तिलक श्री जी म.सा. की अन्तेवासिनी हर्षयशा श्री जी की सशिष्या अध्ययनशीला मोक्षरत्ना श्री जी ने डॉ. सागरमल जी जैन के निर्देशन में आचारदिनकर जैसे दुरूह और विशाल ग्रंथ का अनुवाद किया है। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हो रही है कि गृहस्थ जीवन के संस्कारों से सम्बन्धित उसका प्रथम भाग प्रकाशित हो रहा हैं। इस पुनीत कार्य के लिए साध्वी श्री जी, डॉ. जैन सा. एवं प्रकाशन संस्था साधुवाद के पात्र है। साध्वी श्री जी भविष्य में भी इसी प्रकार ज्ञान आराधना करते हुए सत् साहित्य का सृजन करें। यही शुभभावना। इंदौर गुरूविचक्षणविनेया 20-08-2005 विनीताश्री मंगलकामना व्यवहारिक जीवन में उपादेय हो ऐसे साहित्य का प्रकाशन समाज हित में उपयोगी होता है। साध्वी श्री मोक्षरत्ना श्री जी ने अध्ययन और अनुशीलन में निरत रहकर 'आचारदिनकर' जैसे जैन विधि-विधान के महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ का अनुवाद किया है। यह जानकर प्रसन्नता हुई कि उसके गृहस्थ जीवन के सोलह संस्कारों से सम्बन्धित प्रथम खण्ड का प्रकाशन हो रहा है। साध्वी जी का यह पुरूषार्थ प्रशंसनीय है। वे अपने अध्ययन, मनन और चिन्तन के द्वारा जिनवाणी और जैन धर्म की प्रभावना करे, यही शुभेच्छा है। उनकी साहित्य सेवा के लिए मंगलकामना। विचक्षण शिशु तिलक गुरू चरणरज मंजुलाश्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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