Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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श्रुत संवर्धन की परम्परा के पुण्य सहयोगी
श्री मणिचन्दजी सुखानी परिवार
कोलकाता जैन समाज में जिनका व्यक्तित्व, सद्भावों का ज्वलंत उदाहरण है। जिनका समर्पण, निश्छलता का पावन प्रतीक है। जिनकी सरलता, आत्मिक निर्मलता के लिए जीवंत आदर्श है। जिनकी समन्वय दृष्टि, मित्ती में सव्व भएस की सबल शिक्षा है। जिनके साधना की उष्मा, सूर्य के समान सकल संघ प्रकाशी है। जिनकी उदारवृत्ति, सरिता के समान सर्व पथगामिनी है। जिनकी संकल्प शक्ति, समाज निर्माण का मुख्य आधार है। ऐसे गुण सम्पन्न सुखानी परिवार की प्रियता के विषय में एक कवि के शब्द याद आ रहे हैं
वदनं प्रासादं सदनं सदयं, सहृदयं सुधामुचोवाचः ।
करणं परोपकरणं, येषां केषां न ते वन्द्याः ।। अर्थात जिनके मुखमंडल पर प्रसन्नता विराजित हो, जिसके हृदय में दया का सागर लहराता हो, जिसकी वाणी से अमृत की वर्षा होती हो और जिसका काम ही परोपकार करना हो वे किसके प्रिय नहीं होते।
सुखानी परिवार इन सभी गुणों से ओत-प्रोत हैं। मूलत:बीकानेर निवासी सुखानी परिवार के मुखिया श्री मणिलालजी सुखानी कलकत्ता सेन्ट जेवियर्स से बी. कॉम. है। आपने Sukhani stamps के कार्य का शुभारंभ कर देश-विदेश तक Sukhani परिवार की छवि को विस्तृत किया है। कोलकाता जिनेश्वरसूरि फाउन्डेशन के मेम्बर्स में आपका मुख्य स्थान है। इस संस्था की हर गतिविधियों में आप पूर्ण सहयोग देते हैं। धार्मिक आयोजनों एवं मानव सेवा के कार्यों के लिए आपका हाथ सदा खुला रहता है। लायन्स क्लब आदि सामाजिक संस्थाओं में भी आप पदासीन हैं। शारीरिक प्रतिकूलता होने पर भी प्रभु दर्शन, जिन पूजा, प्रवचन श्रवण आदि आत्मलक्षी प्रवृत्तियों को नियम से करते हैं।
मंजुल स्वभावी, वाणी जादूगर श्रीमती लीलीजी सुखानी का बचपन राष्ट्रसंत पद्मसागर सूरीश्वरजी म.सा. जैसी हस्तियों के साथ बीता है। वर्तमान में कुशल सज्जन महिला मंडल, श्री जिनदत्तसूरि मंडल, जैन महिला समिति आदि में मुख्य पद पर हैं।