Book Title: Jain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 9
________________ - सज्जन नवनीत व्यवहार जगत में रहते हुए सम्यग्दर्शन का रस पान हो हेय-ज्ञेय-उपादेय का भान हो बारह व्रतों की पहचान हो जिससे मोह-मिथ्या-माया का वर्जन हो क्रिया में श्रद्धा और विवेक का सिंचनहो श्रुत आराधना से गुण वर्धन हो और यह हमें लोकाचार से श्रावकाचार श्रावकाचार से श्रमणाचार श्रमणाचार से जिन आचार की ओर आरोहण करने में प्रेरणास्पद बनें इसी अध्यर्थना के साथ...

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