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नंबर.
नाम.
A
६३ द्वात्रिंशद् द्वात्रिंशिका (ताड ) ८३०
६४ द्विवर्णरस्नमालिका
वृति
धनपाल पंचाशिका
वृति
वृति ( संक्षिप्त )
अवचूरि
अवचूरि (बीजी )
६६ | धरणोरद्रस्तव
७०
वृत्ति
नंदिस्तुति व्याख्या
नमस्कार द्वात्रिंशिका B
| ६९ नमस्कारस्तव (प्रा.)
वृत्ति
नवग्रहस्तोत्र
नमिजण
"
जैन औपदेशिक.
लोक.
पत्र ११
११००
३३६
ताख
२५०
११
२५
कर्त्ता.
सिद्धसेन
पुण्यरत्न
रामर्षि
पत्र ३ गुणसौभाग्य
(जैन)
जिनकीर्ति
गा. २४
धनपाल
देवभद्र शिष्य प्रमानंद
धर्मशेखरोपाध्याय
नेमिचंद्र
रच्या
नो सं.
"
भद्रबाहु
क्या छे ?
२८१
| डेक्कन पेज १६७
पा. ३
पा. ३
वृ.
वृ. पा. २-३-४-५
वृ.
पा. ३
पा. ४
पि. रि. ५
पि. रि०.५
पा. ५
| डेक्कन.
AS.
A.S.
नगीनदास. मुद्रित.
पा. ३ पि.रि. ५ मुद्रित. ली. जेसल.
A सदरहू बीशीमांनी वीस बत्रीशी मळे छे. डेक्कन कॉलेजमां जो बत्रीशे वत्रीशी संपूर्ण होय तो त्यांची तेनो उताये करावी लेवानी अत्यंत अगत्य छे. हमण तपास करतां मालम पड्युं छे के डेक्कनमा पण वीराज बत्रीशी के.
B आ नमस्कार द्वात्रिंशिका डेक्कन कॉलेजना लॲस्टमां नोंघेली छे अने तेमां वे कोई जैनाचार्यों करेली छे एम जणाव्युं छे