Book Title: Jain Dharmamruta Author(s): Hiralal Jain Publisher: Bharatiya Gyanpith View full book textPage 8
________________ - ग्रन्थ और ग्रन्थकार-परिचय . - जिन ग्रन्थों के आधारपर जैनधर्मामृतका निर्माण हुआ है, उन ग्रन्थोंका और उनके रचयिताओंका परिचय इस प्रकार है १. उमास्वाति और प्रशमरतिप्रकरण प्रशमरतिप्रकरण-इस ग्रन्थमें प्रशम भाव या वैराग्यको बढ़ाने, उसे स्थिर रखने और संसार-परित्याग कर मुक्ति के मार्गमें आरूढ़ होने के लिए बहुत सुन्दर उपदेश दिया गया है। इस ग्रन्थके भीतर ३१३ पद्य - हैं। यद्यपि ग्रन्थकारने अध्याय आदिका विभाग नहीं किया है, तथापि संस्कृत टीकाकार हरिभद्रसूरिने विषयको दृष्टिसे इसे २२ अधिकारोंमें विभाजित किया है, जो कि इस प्रकार हैं--- . .. १. वैराग्यभावको दृढ़ करनेका उपदेश, २. कषायोंकी अनर्थकारिताका चित्रण, . ३. आठ कर्मोंका संक्षिप्त वर्णन, ४. कर्मवन्धके कारणोंका विवेचन, ५. पाँचों इन्द्रियोंके विषयोंसे प्राप्त होनेवाले दुष्फलोंका निरूपण, ६. आठ मदोंके अनर्थों का वर्णन, ७. साधुके प्राचारका उपदेश, ८. साधुके कर्त्तव्य-अकर्तव्यका उपदेश एवं १२ भावनाओंका प्ररूपण, ... ६. उत्तम क्षमादि दश धर्मोंका वर्णन, १०. चार प्रकारकी धर्मकथाओंको सुनने और चार विकथाओंके छोड़नेका उपदेश, .Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 177