Book Title: Jain Dharma ke Sadhna Sutra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 187
________________ बन जाते हैं । इस विषम स्थिति में खाना बीमारी को निमंत्रण देना है । खाना कब चाहिए ? जब श्रम करने के बाद धातु सम हो जाए, तब भोजन किया जाए । उनकी यह बात तर्कसंगत लगी । जब आगम संपादन का कार्य शुरू हुआ तब देखा, आगमों में इस विषय में बहुत विस्तार से कहा गया है । मुनि भिक्षा लेकर आए तो कुछ क्षण तक विश्राम करे, कायोत्सर्ग करे । भिक्षा से लौट कर आने के बाद मुनि के लिए कायोत्सर्ग करना अनिवार्य है । आयुर्वेद में यही बात कही गई है- शारीरिक श्रम करने के तुरंत बाद भोजन करना बीमारी को बुलावा देना है, कभी-कभी तो इससे मृत्यु भी हो सकती है । लेकिन इस पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है । कहा जाता है ध्यान या आसन के कम से कम पचीस-तीस मिनट से पहले कुछ भी न खाएं न पीएं | इसलिए कि धातु सम रहे, विषम न हो । दिशासूचक यंत्र भगवान् महावीर ने इसीलिए शरीर पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया । एक प्रकार से उन्होंने दिशा-परिवर्तन कर दिया । दृष्टि बदल जाए तो सृष्टि अपने आप बदल जाएगी । आचार्य भी दिशा-परिवर्तन का कार्य करते हैं इसीलिए आचार्य का एक नाम है- देशिक, दिशा दिखाने वाला, दिशा बदलने वाला समुद्र में चलने वाले जलयान और आकाश में उड़ने वाले वायुयान सब दिशासंकेत के आधार पर ही चलते हैं | धरती जैसी सड़क कहां बनी है वहां । मात्र दिशा के आधार पर चलते हैं । दिशासूचक यंत्र बराबर उन्हें सही दिशा दिखा रहा है। महावीर ने एक दिशा पकड़ा दी । यह कहा जाता था- मन ही सब कुछ है | मन ही बांधने वाला है और मन ही छोड़ने वाला है । गीता में अर्जुन ने कृष्ण से कहा-मन को वायु की तरह पकड़ना दुष्कर है । मन को पकड़ना है तो सबसे पहले शरीर को पकड़ें । शरीर को पकड़ लिया तो मन पकड़ में आ जाएगा। शरीर की ही एक क्रिया है श्वास । श्वास को पकड़ ले, मन पकड़ में आ जाएगा | सीधा मन को पकड़ने की कोशिश करोगे तो वह ऐसा भूत है, जो विकराल बन जाएगा, तुम उसे नहीं पकड़ पाओगे, वह तुम्हें कायोत्सर्ग १७३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248