Book Title: Jain Dharma ke Sadhna Sutra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 241
________________ पुण्य, पाप, बंध और मोक्ष- ये चार मूल सूत्र पकड़ में आ जाते हैं तो मोक्ष की प्रक्रिया समझ में आ जाती है । जिसने इन चार सूत्रों को पकड़ लिया, जीवन का पूरा चित्र उसके सामने आ गया । जीव : मोक्ष जीवन के रहस्यों को कोई नहीं जानता । जो वर्तमान में हो रहा है, आदमी उसे ही मानता है । वह अतीत को भी पूरा नहीं जानता, भविष्य को तो जानता ही नहीं है | हम जीवन के शेष सारे रहस्यों को छोड़कर मूलभूत चार रहस्यों को पकड़ लें- जीव है, पुनर्जन्म है, कर्म है, बंध और मोक्ष है | कर्म बंध रहा है, वह बंधते-बंधते रुक गया और मोक्ष हो गया । मोक्ष और परमात्मा क्या है ? जब तक कर्म बंध रहा है तब तक आत्मा आत्मा है, जीव है | जिस क्षण कर्म का बंध समाप्त हो गया, आत्मा परमात्मा बन गया, जीव का मोक्ष हो गया । मोक्ष की व्याख्या ___जैन दर्शन में मोक्ष की जो व्याख्या की गई है, उसका अर्थ है- आत्मा का अपने रूप में अवस्थित हो जाना मोक्ष है । न कोई स्थान का नाम है मोक्ष और न कोई धाम का नाम है मोक्ष । न शरीर से संबंध, न पुद्गल से संबंध और न पदार्थ से संबंध । इन सबसे संबंध-विच्छेद हो जाना ही परमात्मा होना है । जैन दर्शन की परमात्मा संबंधी जो अवधारणा है, वह भिन्न प्रकार की है । कुछ दार्शनिक मानते हैं-जो अनुग्रह और निग्रह करता है, जो भाग्यविधाता है, जो न्याय करता है, अन्यायी को दण्ड देता है, वह परमात्मा है । किन्तु जैन दर्शन का परमात्मा न अनुग्रह करना जानता है न निग्रह करना जानता है, वह केवल अपने आप में रहता है । परमात्मा प्रश्न है- स्थूल नियमों में जीने वाला इन सूक्ष्म नियमों में कैसे विश्वास करेगा ? स्थूल जगत् में परमात्मा उसे माना जाता है, जिसमें नेतृत्व के दोनों आत्मा और परमात्मा २२७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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