Book Title: Jain Dharma ke Sadhna Sutra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 230
________________ उच्चारण मात्र से शोक और दुःख का भाव समाप्त हो जाएगा ? संकल्प मात्र से यह स्थिति बनती नहीं है । जब संकल्प सिद्ध होता है तभी वांछित परिणाम मिल सकता है। अनुप्रेक्षा संकल्प की सिद्धि में, संवर की सिद्धि में साधनभूत बनती है । संकल्प-सिद्धि में इसका योग महत्त्वपूर्ण है । हम बार-बार यह अनुप्रेक्षा करें- सब संयोग अनित्य हैं । जिस पदार्थ का योग मिला है, वह अनित्य है । यह अभ्यास जितना परिपक्व होगा, उतना ही पदार्थ के प्रति लगाव कम होता चला जाएगा । जैसे-जैसे आसाक्ति कम होगी, अनासक्ति सधेगी, वैसेवैसे संवर भी सधता चला जाएगा । सुरक्षा कवच दो भाई आपस में धन का बंटवारा कर रहे थे। सब कुछ बराबर बांट लिया किन्तु दो चीजें बच गईं। एक थी हीरे की अंगूठी और एक थी सामान्य अंगूठी, जिस पर लिखा था प्रज्ञा की अंगूठी । बड़े भाई ने कहा- मैं हीरे की अंगूठी लूंगा । छोटे भाई ने बड़े भाई का आग्रह स्वीकार कर लिया । उसने सामान्य अंगूठी में ही संतोष का अनुभव किया । बड़ा भाई हीरे की अंगूठी को पाकर उन्मादी बन गया, व्यसनों में फंस गया, बरबाद हो गया । छोटा भाई प्रज्ञा की अंगूठी को देखता रहा, उसकी अनुप्रेक्षा करता रहा । उसने उन्माद को पनपने का अवसर ही नहीं दिया । उसके सामने यह सूत्र थाजो कुछ मिला है, वह सब अनित्य है । यह अनित्यता का सूत्र उसका सुरक्षाकवच बन गया । एकत्व अनुप्रेक्षा __अनुप्रेक्षा का एक प्रकार है- एकत्व अनुप्रेक्षा । व्यक्ति सोचे- मैं अकेला हूं, अकेला आया हूं,मुझे अकेले जाना है । यह सचाई है- अपना किया हुआ स्वयं मुझे ही भोगना है । कर्म करने में भी अकेला है व्यक्ति और उसका फल भोगने में भी अकेला है व्यक्ति । अपना किया हुआ कर्म मुझे ही भोगना होगा- यह भावना जितनी प्रबल बनेगी, यह संस्कार जितना पुष्ट होगा, उतना - जैन धर्म के साधना-सूत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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