Book Title: Jain Dharma ke Sadhna Sutra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 234
________________ उदासी का रहस्य आयुर्वेद के एक महान् आचार्य थे । उनका नाम था आचार्य पुनर्वसु । उनके पट्टशिष्य थे- अग्निवेश । एक दिन दोनों भ्रमण कर रहे थे । चलतेचलते आचार्य पुनर्वसु ने आकाश को निहारा । उनके कदम रुक गए, चेहरे पर उदासी छा गई। अग्निवेश अचानक आए इस परिवर्तन से अवाक् रह गया । उसने पूछा-'गुरुदेव ! यकायक यह उदासी क्यों छा गई ?' पुनर्वसु बोले-'मैंने चरक की संहिता का प्रणयन किया । मानव समाज को स्वस्थ रखने के लिए जितना करना चाहिए था उतना मैंने कर दिया, परन्तु आज लगता है- मेरा काम पूरा नहीं हुआ ।' __'गुरुदेव ! यह कैसे कह रहे हैं आप ?' 'वत्स ! मैंने आकाश-दर्शन से यह जान लिया है कि भविष्य में क्या होने वाला है ?' 'गुरुदेव ! भविष्य में क्या होगा ?' ___'वत्स ! मैंने भविष्य में होने वाली तीन स्थितियां देखी हैं । पहली बात है- प्रकृति-विपर्यय । प्रकृति के जो पांच भूत हैं-पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु और वनस्पति, ये पांचों प्रकंपित हो रहे हैं । आज की भाषा में हम इसे पर्यावरण का प्रदूषण कह सकते हैं | आदमी कितनी ही दवा ले, यह प्रकृति-विपर्यय, पर्यावरण प्रदूषण उसे फिर बीमार बना देगा । दूसरी बात है- मनुष्य का मन अधर्म में रमण करेगा । हिंसा, झूठ, चोरी, क्रूरता आदि बुरी प्रवृत्तियों में वह अधिक लिप्त रहेगा, मानसिक तनाव बढ़ेगा । तीसरी बात है- बुद्धि का विपर्यय । आदमी नित्य को अनित्य मान लेगा, अनित्य को नित्य मान लेगा । बुद्धि का ऐसा विपर्यय होगा कि आदमी शाश्वत और अशाश्वत में भेद नहीं कर पाएगा।' ____ आचार्य पुनर्वसु ने कहा- 'वत्स ! ऐसा लगता है- यह त्रिदोष पर अवलंबित चिकित्सा-शास्त्र और औषधियां काम नहीं करेंगी । हम अब इसे इतना ही रहने दें और एक नया शास्त्र बनाएं, जिससे मनुष्य के मन और बुद्धि की तथा प्रकृति की स्थिति भी ठीक हो सके ।' २२० जैन धर्म के साधना-सूत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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