Book Title: Jain Dharma ke Sadhna Sutra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 233
________________ मनोवृत्ति को बदला जा सकता है उसका हम श्वास लेते हैं, श्वास का ग्रहण होता है । योग की भाषा में इसे पूरक कहा जाता है । हम श्वास निकालते हैं। योग की भाषा में वह रेचन है । हम श्वास को रोकते भी हैं। योग की भाषा में यह कुंभक - संयम है । स्वास्थ्य के लिए रेचन और कुंभक- दोनों आवश्यक हैं, जो बीमारी है, शोधन कर दिया जाए, रेचन कर दिया जाए । उसके बाद उसका निरोध कर दिया जाए ताकि बीमारी के तत्त्व पुनः प्रविष्ट न हों । साधना की भी यही प्रक्रिया है । आध्यात्मिक स्वास्थ्य या मानसिक स्वास्थ्य की प्रक्रिया भी यही है । शोधन और निरोध आध्यात्मिक स्वास्थ्य का सूत्र है- शोधन करें, रेचन करें और निरोध कर दें। शोधन और निरोध का मार्ग बतलाया गया- तपसा निर्जरा च- तपस्या और निर्जरा के द्वारा शोधन करें, निरोध करें। संवर का काम है रोक देना, निरोध कर देना । तपस्या का कार्य उभयमुखी है । उसका काम शोधन करना भी है, निरोध करना भी है । व्यक्ति उपवास के द्वारा आश्रव का निरोध भी करता है । उपवास है - खाने की प्रवृत्ति का निरोध किन्तु उसके साथ-साथ व्यक्ति शुभ प्रवृत्ति करता है, उससे निर्जरा होती है, कर्म का शोधन होता है । तपस्या से ये दोनों काम होते हैं । इन दोनों के बिना विशुद्धि नहीं हो सकती । रेचन करो, इसका अर्थ है- भीतर जो खराबी है, उसे निकालो । निरोध करो, इसका अर्थ है - पुनः खराबी पैदा न हो, इसकी व्यवस्था करो । रेचन है- निर्जरा । निरोध है संवर । सारी आध्यात्मिक प्रक्रिया इन दो शब्दों में समाहित है - संवर और निर्जरा, रोको और विशुद्धि करो । मनोवृत्ति को बदला जा सकता है Jain Education International For Private & Personal Use Only २१९ www.jainelibrary.org

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