Book Title: Jain Dharma ke Sadhna Sutra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 227
________________ वही है परमात्मा एक व्यक्ति ने रवीन्द्रनाथ टैगोर से पूछा- आपने गीतांजली में परमात्मा का बहुत सुन्दर और सजीव चित्रण किया है । क्या आपने परमात्मा को जान लिया ? जो लिखा गया है, वह परमात्मा को जानकर लिखा गया है या ऐसे ही लिख दिया गया है ? रवीन्द्रनाथ टैगोर इस प्रश्न को सुनकर अवाक् रह गए । इतना बड़ा प्रश्न ! उनके दिमाग में बिजली कौंध गई । वे प्रश्न का समाधान पाने के लिए निकल पड़े। गांव के बाहर एक पोखर आया । उन्होंने देखा, पोखर का पानी बहुत गंदा है । पर सूरज की उजली रश्मियां उस पानी में उजली ही दिखाई दे रही हैं । उनका मन ठहर गया। उन्हें उत्तर मिल गया- बस ! यही परमात्मा है । जो गन्दे में भी उजला रह सकता है, वही है परमात्मा । आवश्यक है साधना टैगोर के मन में एक द्वन्द्व पैदा हुआ, एक तड़पजागी और उन्हें समाधान मिल गया । जब मन में द्वन्द्व ही पैदा नहीं होता है तब साधना कैसे होगी? और बिना साधना के सिद्धि कैसे होगी ? संवर की साधना के लिए मन में यह तड़प जागनी चाहिए- मैंने संवर किया है, त्याग लिया है, दरवाजा बंद किया है पर वह टिकेगा कैसे ? हवा का एक झौंका आएगा, दरवाजा खुल जाएगा । दरवाजा बंद किया है, संवर किया है तो उसकी सिद्धि के लिए साधना करनी होगी । बहुत आवश्यक है साधना करना । संवर की साधना के कुछ उपाय हैं । उन उपायों को काम में लिए बिना संवर सिद्ध नहीं होता । आचार्य उमास्वाति ने संवर की साधना के कुछ उपाय बतलाए हैं । वे ये हैं- गुप्ति, धर्म, अनुप्रेक्षा, परीषह-विजय और चारित्र । कायगुप्ति संवर की साधना का सबसे पहला उपाय है गुप्ति । गुप्तियां तीन हैं - काय-गुप्ति, वाक्-गुप्ति और मनो-गुप्ति । शरीर, वाणी और मन- इनका गोपन करना, संरक्षण करना एक महत्त्वपूर्ण उपाय है | आश्रव अनेक हैं, क्या दरवाजा बंद है ? २१३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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