Book Title: Jain Dharma ke Sadhna Sutra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 217
________________ नैतिकता का आधार केवल बाहर के व्यवहार और आचरण के आधार पर व्यक्तित्व की व्याख्या हो तो पग पग पर नैतिकता के टूटने का अवसर बना रहता है । लोग कहते हैं- अमुक व्यक्ति ने इतनी बुराइयां कीं, स्मगलिंग की और वह बड़ा आदमी बन गया । अमुक आदमी ने रिश्वत ली, पैसे वाला बन गया । ईमानदारी की बात करने वाला गरीब रह जाता है, रोटी की समस्या से जूझता रहता है । यह नैतिकता को तोड़ने के लिए प्रेरित करने वाला उदाहरण है। जब तक आश्रव और बंध की प्रक्रिया को नहीं समझा जाएगा तब तक नैतिकता और चरित्र की बात समझ में नहीं आएगी। जब तक आश्रव और बंध को नैतिकता का आधार नहीं माना जाएगा तब तक नैतिकता का अस्तित्व ही नहीं बन पाएगा। बाहरी जगत् के आधार पर कोई व्यक्ति नैतिक क्यों बनेगा? इस दृश्य जगत् में वे व्यक्ति ज्यादा अच्छा जीवन जीते हैं, जो अनैतिकतापूर्ण आचरण करते हैं । इस आधार पर व्यक्ति नैतिक बनना पसन्द ही नहीं करता। नैतिकता का आधार बनता है आश्रव और बंध । इसका अर्थ है- आज आदमी जो आचरण कर रहा है, उसके परिणाम का उसे पता नहीं है किंतु जिस दिन वह विपाक में आएगा, हो सकता है कि मनुष्य उस समय मनुष्य ही न रहे । यह है कर्म और बंध का सिद्धांत । चतुष्कोण जीवन का एक पहलू है बंध | हम बंधे हुए हैं और बांधने का जो चतुष्कोण है, वह है- आस्रव, बंध, पुण्य और पाप । जीवन का दूसरा पहलू भी है । मनोविज्ञान में चित्त और मन- ये दो तत्त्व माने गए हैं । हम इससे भी आगे चलें, इसमें एक चीज जोड़ दें- आत्मा । यूंग ने चित्त को आधार माना इसलिए आत्मा जैसा तत्त्व उसके लिए उपयोगी नहीं बना । यूंग ने मन को भी आधार के रूप में स्वीकार नहीं किया । फ्रायड ने मन को आधार माना । उसके लिए चित्त और आत्मा- दोनों का कोई मूल्य नहीं था । किन्तु एक दार्शनिक व्यक्ति मन और चित्त- दोनों से आगे चलेगा, आत्मा को आधार मानेगा। स्वतंत्र भी बंधा हुआ है २०३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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