Book Title: Jain Dharm aur Vidhva Vivaha 01 Author(s): Savyasachi Publisher: Jain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi View full book textPage 8
________________ नम्र निवेदन यह पाठकों में छिपा नहीं है कि विधवा विवाह का प्रश्न दिन २ देश व्यापी होता जा रहा है। एक ममय था कि जब विधवा विवाह का नाम लेने ही म लोग भय खाते थे: आज यह समय आगया है कि सब से पीछे रहने वाले सनातन धर्मी और जैन धर्मा बड़े विद्वान भी इसका प्रचार करने में नन मन और धन में जुटे हुए दिखाई पड़ते है । यह देश के परम सौभाग्य की बात है कि अब सर्व साधारण को विधवा विवाह के प्रचार की आवश्यक्ता का अनुभव हो चला है । यद्यपि कही २ थोड़ा २ इसका विरोध भी किया जा रहा है, लेकिन मभ्य और शिक्षित समाज के सामने उस विरोध का अब कोई मूल्य नहीं रहा है। जैन समाज में भी यह प्रश्न जोरी में चल रहा है। कुछ लोग इसका विरोध कर रहे है । इस विषय पर निर्गय करने के लिय जैन समाज के परम विद्वान, अग्विल भारतवर्षीय सनातन धर्म महा सभा द्वाग 'विद्या वार्गिध की पदवी से विभूषित श्रीमान पं० चम्पतगय जी जैन बार-ट-ला, हरदोई ने जैन समाज के सामने कुछ प्रश्न हल करने को श्रीमान माहित्य रत्न पं० दरबागेलाल जी न्यायाध द्वारा सम्पादित मुप्रसिद्ध पत्र "जन जगत" ( अजमर ) में प्रकाशित कराये थे । इन प्रश्नों को श्रीयुत "मध्य नाची" महोदय ने इसी पत्र में बड़ी योग्यता से हल किया है कि जिसका उत्तर देने में लोग अब तक असफल रहे हैं। हम चाहते है कि समझदार जैन समाज पक्षपात को त्याग कर श्रीयुत 'सत्यमाची' की विना से लाभ उठाये । श्रतःPage Navigation
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