Book Title: Jain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Author(s): Subhadramuni
Publisher: University Publication

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Page 486
________________ तिरस्कार किसी का तिरस्कार करना उसका अपमान करना होता है। अपमानित व्यक्ति अपने सम्मान पर चोट से अशान्ति व दुःख से ग्रस्त हो जाता है। अतः किसी का तिरस्कार करना एक हिंसक व पाप कार्य सिद्ध होता है। वैदिक व जैन- इन दोनों धर्मों ने इस कार्य को त्याज्य माना है। (1) न बाहिरं परिभवे । (दशवैकालिक सूत्र - 8/30) - किसी का भी अपमान नहीं करना चाहिए। (2) नावमन्येत कञ्चन । (मनुस्मृति - 6/47 ) - किसी की भी अवमानना - तिरस्कार नहीं करना चाहिए। सभी आत्माएं एक समान हैं। अन्य का तिरस्कार करने वाला व्यक्ति स्वयं को श्रेष्ठ मानता है और अहंकार से ग्रस्त होता है। अतः किसी का तिरस्कार नहीं करना चाहिए-यह वैदिक व जैन- दोनों धर्मों द्वारा एकस्वर से किया गया उपयोगी उद्बोधन है। तृतीय खण्ड, 453 000

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