Book Title: Jain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Author(s): Subhadramuni
Publisher: University Publication

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Page 492
________________ (2) आददीत यतो ज्ञानं, तं पूर्वमभिवादयेत् । (मनुस्मृति - 2/117) - जिनसे ज्ञान सीखे, उनका अभिवादन - वन्दन करना चाहिए । जे आयरिय-उवज्झायाणं, सुस्सूसा वयणंकरा । तेसिं सिक्खा पवड्ढति, जलसित्ता इव पायवा ॥ (दशवैकालिक सूत्र - 9/3/12) जो शिष्य आचार्यों और उपाध्यायों की सेवा करते हैं, उनकी आज्ञानुसार चलते हैं, उनकी शिक्षा उसी प्रकार बढ़ती है, जिस प्रकार जल से सींचे हुए वृक्ष । - (3) (4) अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः । चत्वारि तस्य वर्द्धन्ते, आयुर्विद्या यशो बलम् ॥ (मनुस्मृति - 2/121) पूज्य जनों का सदा अभिवादन और वृद्ध जनों की सेवा करने वाले की आयु, विद्या, यश और बल बढ़ता है। - (5) इंगियागार - संपण्णे, से विणीए त्ति वुच्चइ । (उत्तराध्ययन सूत्र- 1/2) गुरु के इंगित तथा आकार - मनोभावों को जानकर कार्य करने वाला विनीत कहलाता है। कृतीप राय 45

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