Book Title: Jain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Author(s): Subhadramuni
Publisher: University Publication

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Page 491
________________ 3000-300000000000 0 - 05 800000 HomowooWOODOOR माता, पिता, गुरुजन, वृद्ध व श्रद्धेय व्यक्तियों के प्रति आदर व सम्मान भाव को प्रदर्शित करने का साधन है- विनय। विनय श्रद्धालु व श्रद्धेय के मध्य आन्तरिक निकटता स्थापित करता है और फलस्वरूप श्रद्धेय के शुभाशीर्वाद प्राप्त कराने में सहायक होता है। ज्ञानार्जन के क्षेत्र में तो विनय की विशिष्ट उपयोगिता मानी गई है। विनय के द्वारा जितनी अधिक समीपता गुरु व शिष्य के मध्य स्थापित होती है, उतनी ही अधिक ज्ञानार्जन की सम्भावना शिष्य के लिए हो जाती है। विनयी शिष्य गुरु से मानसिक स्तर पर इतनी अधिक निकटता या तादात्म्य स्थापित कर लेता है कि गुरु के बिना बोले ही, उसके शारीरिक चेष्टा या संकेत से ही उनके मनोभाव को समझ लेता है और तदनुरूप आचरण करता है। श्रद्धा-भक्ति के कारण विनीत शिष्य नम्रता, सेवापरायणता आदि सद्गुणों से सम्पन्न होकर विद्यार्जन का उत्तम पात्र बनता है। भारतीय संस्कृति की सभी विचारधाराओं में, विशेषकर वैदिक व जैन- इन धर्म-परम्पराओं में, एकस्वर से ज्ञान की महत्ता को स्वीकार किया गया है। (1) जस्संतिए धम्म-पयाइं सिक्खे, तस्संतिए वेणइयं पउंजे। (दशवकालिक सूत्र- 9/1/72) - जिनके पास धर्म का पाठ सीखे, उनके प्रति विनय करे।

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