Book Title: Jain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Author(s): Subhadramuni
Publisher: University Publication

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Page 489
________________ - ( राम का कैकेयी को कथन)-पिता की सेवा करना या उसकी आज्ञा का पालन करना-इससे बढ़कर कोई अन्य धर्माचरण नहीं है। (3) नास्ति मातृसमो गुरुः। (महाभारत, 12/108/18) -माता के समान कोई 'गुरु' नहीं है। (4) मातृदेवो भव।पितृदेवो भव।आचार्यदेवो भव।। (तैत्तिरीय उपनिषद्-1/11) -माता, पिता और गुरु-आचार्य को देवता के समान समझो। (5) माता पिता कलाचार्यः एतेषां ज्ञातयस्तथा। वृद्धा धर्मोपदेष्टारः, गुरुवर्गः सतां मतः॥ (आ.हरिभद्र-कृत योगबिन्दु,170) -माता, पिता, कला-शिक्षक,इनके निकट सम्बन्धी जन, वृद्ध धर्मोपदेशक इन सभी को सज्जन 'गुरु' के रूप में (वन्दनीय) मानते हैं। ___(6) मातापित्रोर्गुरूणां च पूजा बहुमता मम। (महाभारत-12/108/3) __(भीष्म का कथन-) माता-पिता और गुरु-जनों की पूजा करने को मैं बहुत सम्मान देता हूँ। 4 (1101 को कर 11/11 16- >

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