Book Title: Jain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Author(s): Subhadramuni
Publisher: University Publication

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Page 500
________________ 88000000000000 0 -80058889988907 Ranisasana मृत्यु प्रत्येक देहधारियों के लिए अवश्यम्भावी है। देह का संयोग 'जन्म' है तो देह का वियोग मृत्यु है। प्रत्येक संयोग का अन्त होता है, अत: जन्म के साथ मृत्यु जुड़ी होती है। जन्मधारियों का मृत्युग्रस्त होना किसी सीमित प्रदेश में नहीं, अपितु समस्त लोक में दृष्टिगोचर होता है। देवता व उनके इन्द्र तक की आयु का कहीं न कहीं अन्त होता ही है। मृत्यु बड़ी निर्दय होती है। यह व्यक्ति को उसी प्रकार अचानक खींच कर ले जाती है, जिस प्रकार सिंह हिरण को एक झपट्टे में मुंह में दबोच कर ले जाता है। - जैन व वैदिक- दोनों धर्म-परम्पराएं धार्मिक उद्बोधन के प्रसंग में प्रत्येक व्यक्ति को मृत्यु की अनिवार्यता से परिचित कराना अपेक्षित समझती हैं ताकि वह व्यक्ति आत्म-कल्याण यथाशीघ्र कर ले। (1) मच्चुणाब्भाहओ लोगो, जराए परिवारिओ। (उत्तराध्ययन सूत्र- 14/23) -यह लोक मृत्यु से अभ्याहत-आक्रान्त है, जरा-बुढापे से परिवारित-घिरा हुआ है। (2) मृत्युनाऽभ्याहतोलोको, जरया परिवारितः। __(महाभारत- 12/277/9) - यह लोक मृत्यु से अभ्याहत-आक्रान्त है, जरा-बुढापे से परिवारित-घिरा हुआ है।

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