Book Title: Jain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Author(s): Subhadramuni
Publisher: University Publication

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Page 499
________________ - जिस प्रकार कोई मनुष्य पुराने वस्त्रों को छोड़कर नये वस्त्र ग्रहण करता है, उसी प्रकार आत्मा पुराने शरीर का त्याग कर दूसरे नये शरीर धारण करता है । आत्मा एक शाश्वत द्रव्य है- यह आत्मवाद का निस्कर्ष है । कर्मों का फल भुगतना ही पड़ता है, भले ही इस जन्म में या अगले जन्मों मेंयह कर्मवाद का उत्स है। भारतीय संस्कृति के उक्त दोनों वादों को समन्वित करने वाला एक तीसरा फलितवाद है- पुनर्जन्मवाद । आत्मवाद, कर्मवाद व पुनर्जन्म के सम्बन्ध में वैदिक व जैन- दोनों धर्मों का दृष्टिकोण समान है । जनम क 000

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