Book Title: Jain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Author(s): Subhadramuni
Publisher: University Publication

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Page 508
________________ (10) प्रभाऽस्मि शशि-सूर्ययोः। (गीता-7/8) - सूर्य और चन्द्रमा में उनकी प्रभा मैं ही हूं। (11) तेजस्तेजस्विनामहम्। (गीता-7/10) - तेजस्वियों का तेज मैं हूं। (12) अरिहंते सरणं पवज्जामि। (आवश्यक सूत्र, सामायिक) - मैं अरिहंतों की शरण स्वीकार करता हूं। (13) सिद्धेसरणं पवजजामि। (आवश्यक सूत्र, सामायिक) - मैं सिद्धों की शरण स्वीकार करता हूं। (14) साहू सरणं पवजामि। (आवश्यक सूत्र, सामायिक) - मैं साधुओं की शरण स्वीकार करता हूं। (15) केवलि-पन्नत्तं धम्मंसरणं पवज्जामि। (आवश्यक सूत्र, सामायिक) - मैं केवली-प्ररूपित धर्म की शरण स्वीकार करता हूं।


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