Book Title: Jain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Author(s): Subhadramuni
Publisher: University Publication

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Page 503
________________ (2) कामबन्धनमेवैकं नान्यदस्तीह बन्धनम्। (महाभारत- 12/2517) - काम (राग) का बन्धन ही बन्धन है, अन्य कुछ बन्धन नहीं है। (3) अात्थहेउं निययस्स बंधो। (उत्तराध्ययन सूत्र- 14/19) - तुम्हारा अपना बन्धन तुम्हारे आन्तरिक परिणामों पर निर्भर (4) बंधप्पमोक्खो तुज्झ अात्थे व।। __ (आचारांग सूत्र-1/5n) - बन्धन से मुक्ति तुम्हारे ही हाथ में है। (5) उद्धरेदात्मनाऽऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्। (गीता- 6/5) - आत्मा से ही आत्मा का उद्धार करे, उसे गिराए नहीं। (6) अपुणरावित्ति सिद्धिगइ नामधेयं ठाणं। (आवश्यकसूत्र, प्रतिक्रमण) मुक्तात्माओं का स्थान वह है, जिसे सिद्धगति नाम से पुकारते हैं और जहां जाकर वापिस नहीं आते।

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