Book Title: Jain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Author(s): Subhadramuni
Publisher: University Publication

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Page 493
________________ मय्यर्पितमनोबुद्धिर्यो मे भक्तः स मे प्रियः। (गीता- 12/14) - जिसने मुझे (परमेश्वर को) अपनी बुद्धि और मन अर्पित कर दिया, वही मेरा (परमेश्वर का) प्रिय भक्त है। खेती के लिए या वृक्षों, पेड़-पौधों के अत्यधिक फलने-फूलने के लिए जल-वृष्टि या जल से सींचने की जो महत्ता है, वही महत्ता ज्ञानार्जन में 'विनय' की मानी गई है। सभी ज्ञानार्थियों को तथा श्रद्धेय से कृपा -प्रसाद के अभ्यर्थियों को 'विनय' का आश्रयण करना चाहिए- इस तथ्य को वैदिक व जैन- दोनों धर्म-परम्पराएं समान रूप से रेखांकित करती हैं। DTH का सा... FAIL -660

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