Book Title: Jain Dharm Vaidik Dharm Ki Sanskrutik Ekta Ek Sinhavlokan
Author(s): Subhadramuni
Publisher: University Publication

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Page 485
________________ पावंखमइ असेसं, खमाय पडिमंडिओ यमुणिपवरो। (भावप्राभृत, 108 __ - जो मुनिप्रवर क्षमा से सुशोभित है, वह समस्त पाप-कर्म का क्षय करता है। क्रोध विनाशकारी व हिंसक वातावरण का जनक होता है। इसके विपरीत, क्षमा सुख व शान्ति का संवर्धन करती है। क्रोध की हे यता और क्षमा की उपादेयता के सम्बन्ध में वैदिक व जैन- ये दोनों धर्म एकस्वर से पूर्ण सहमत हैं।

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