Book Title: Jain Dharm Prakash 1951 Pustak 067 Ank 03 04 Author(s): Jain Dharm Prasarak Sabha Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha View full book textPage 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir X IAOMIENIE DETIK HERIO LAUNATARLEITUM VEGINI KIADVARSELAMASINETIK IAKOOD ADID GANRANDES श्रद्धेय कुंवरजी को हृदय श्रद्धांजलि । 106181 8WERINK31 MARATHASHAImmmmmmmmse 2101121 91AMEVJI:31419 HINAV|| IIMAITHILICATULSIRHUHhlliUITMHINDAULISION E79131191 91919011310010Wik!!MAHARA श्रद्धालु परम हितेपी आदर्श श्रावक हो गये। द्वेय रख परमार्थ का आत्मा को निर्मल कर गये। यत्ना से होता कार्य एला यह प्रत्यक्ष बतला गये। कुंतर्क करनेवालों का अज्ञान संशय हर गये। वस्तुस्थिति समझाय कर प्रश्नों का उत्तर दे गये । रहकर सदा समदृष्टि से सम्यकत्व यह विकसा गये ॥ जीन धर्म को करके हृदयंगन, 'प्रज्ञाशः' में प्रगटा गये । कोई भी आया पास उनसे झान-गोष्ठी कर गये । हृदय से आत्मवत् सब को समझकर प्रेमको प्रगटा गये। दया से ओतप्रोत हो कर पांजरापोल को अपना गये ॥ यशस्वी जीवन वीताकर ज्ञानमय और धर्ममय ही हो गये। श्रद्धा के ओ परमपात्र! प्राण सभा के कहा गये। द्धार कर व्रत वार को साधुचरित से बन गये। जमत उठाकर प्राण ले साहित्य-सेवा कर गये ॥ लीनी प्रतिज्ञा वरतेज नदी पर, वह ज्ञान-नीर वहा गये॥ राजनल भण्डारी-आगर (मालवा). BIHASHMAHHHIENTERTAMANHAINA- -196899HHHIREHLAKH IHARIYANHIDHIANIM For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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