Book Title: Jain Dharm Prakash 1947 Pustak 063 Ank 10
Author(s): Jain Dharm Prasarak Sabha
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 7
________________ .0000000 00000... roB00000 Decommmmmsent 00000000000000 0 4000mnoon.. e rms000000000000 000mmosam andon Entrememes... Hom.marawaenmaao r.00000000000000000 0 . mumiona 100MARKamasuatr.. measooomnanimoonsoon r u-.00000000000000 स्वतंत्रता का संक्रान्तिकाल जगत को चाह शान्ति की, मची जग में वह क्रान्ति है । मनावे हर्ष से हम आज, जो आई संक्रान्ति है ॥ १ ॥ करें स्वागत संक्रान्ति का, न उच्छंखल उत्क्रान्ति का ।। स्वतंत्रता संगमें लाई, जो आई वह संक्रांति है ॥२॥ जगत में उत्क्रांति व्यापी है, मिटावेंगे संक्रान्ति से । परस्पर संगठन कर लें, तभी सच्ची संक्रान्ति है ॥ ३ ॥ हुवे बलिदान लाखों ही, इस आजादी की वेदी पर ।। यही आजादी संग अपने, बड़ी जीम्मेवारी लाई है ॥ ४ ॥ बंगाली ब पंजाबी की, परीक्षा हो गई जग में । रहे बाकी उन्हों की अब, परीक्षा होने आई है ॥ ५ ॥ बहन को डाल बन्धन में, हरे थे पुत्र पुत्री को। नराधम क्रूर कंस के, समय की याद आई है ॥ ६ ॥ उड़ाता था वो बच्चों को, सताता मात बहनों को । परिस्थिति थी ऐसी में, 'घनश्यामने सुरत दीखाई है ॥ ७ ॥ अधर्म होने लगा ज्यादा, महा इस देश भारत पर । मनोहर मुरली के स्वर ले, करी थी उनने शान्ति है ॥ ८ ॥ नहीं स्वर को सहन कर के, बकासुर भेजा कंसने । हरा करके उन्होंने फिर, करी जगमें विश्रांति है ॥ ९ ॥ उसी क्रूर कंस के वंशज, हुवे पैदा अब भारत में । मिटाये उनने मुरली से, मगर अब हाथ तकली है ॥ १० ॥ कहाते थे वे मनमोहन, महात्मा ये दास मोहन है । वे सुदर्शन चक्रधारी थे, ये चरखा के अवतारी है ॥ ११ ॥ वे महाभारत मचा करके, जगत में शान्ति लाये थे । ये भारत को जगाकर के, स्वतंत्र संक्रान्ति लाये है ॥ १२॥ जगत परिपूर्ण जग जाये, यही संदेश बापु का।। अधमता नष्ट कर देवें, तभी सञ्ची संक्रान्ति है ॥ १३ ॥ संक्रान्ति का करें स्वागत, हो हर घर में संक्रान्ति ही। स्वतंत्र यह विश्व बन जाये, तभी सच्ची संक्रान्ति है॥ १४ ॥ इसी के साथ ही अपना, करेंगे प्राप्त प्रिय स्वराज । यही है राज आतम का, इसीमें पूर्ण शान्ति हैं ॥ १५ ॥ राजमल भंडारी-आगर (मालवा) (१) श्रीकृष्ण (२) महात्मा गांधी (३) आत्मा का राज्य वह मोक्ष. 0000000000000mmUPARI0000000000000mLdromeo0000000000 OMORPHAND000000000000000000000

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