Book Title: Jain Dharm Prachintam Jivit Dharm
Author(s): Jyotiprasad Jain
Publisher: Dharmoday Sahitya Prakashan

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Page 12
________________ 5. बौद्धों पर जैन प्रभाव के संकेत डॉ. जैकोबी कहते हैं कि बौद्धों ने जैनों से 'आस्रव' पद को सैद्धान्तिक महत्त्व बिना जाने ही उधार लिया है। चूँकि बुद्ध मुख्यतया मोक्ष ले जानेवाले पर रुचि रखते थे, अतः उन्होंने नये और आत्मनिर्भर, सदाचार के आधारस्वरूप मनोविज्ञान पर विचार नहीं किया। प्रतीत होता है कि उन्होंने इस विषय पर तत्कालीन विचारों और उसके साथ ही उनको व्यक्त करनेवाले तत्कालीन शब्दों को अधिकता से ग्रहण कर लिया। अतः बौद्ध मनोविज्ञान कुछ अस्पष्ट और अपरिभाषित है। जैकोबी जोर देकर कहते हैं कि यदि जैनों ने पहले ही उसका ऐतिहासिक अर्थों में प्रयोग न किया होता, तो बौद्ध 'आस्रव' शब्द का प्रयोग उसके ऐतिहासिक अर्थ से परे कभी नहीं कर सकते थे । (जैसे लेटिन ज्योतिषियों का 'इन्फ्लूएंस' शब्द अंग्रेजी ने गोद लिया, इत्यादि।) बौद्ध ‘संवर' पद का भी प्रयोग करते हैं अर्थात् 'शील संवर' (नैतिक नियमों का संयम) और कृदन्त 'संवृत' (संयमित) शब्द, जो ब्राह्मण लेखकों के द्वारा इन अर्थों में प्रयुक्त नहीं हुए । अतः अधिक सम्भव है कि ये शब्द जैनधर्म से ही गोद लिये गये हैं, जहाँ पर उनका सही अर्थ सूचित किया है, जिसे वे पर्याप्त रूप से व्यक्त करते हैं। 6. जैनधर्म के महत्त्व और संभाव्य अधिक प्राचीनता के बौद्धों के द्वारा संकलित अप्रत्यक्ष साक्ष्य 1. वे जैनों (निगन्थों) का प्रतिद्वन्द्वियों और बौद्ध से धर्मान्तरितों की तरह उल्लेख करते हैं, परन्तु इसका अर्थ यह कभी नहीं है कि यह नवीन निर्मित संप्रदाय है । 2. वे वैशाली के लक्ष्वियों के पुराने निगन्थ चैत्यों के उल्लेख करते हैं। 12

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