Book Title: Jain Dharm Prachintam Jivit Dharm
Author(s): Jyotiprasad Jain
Publisher: Dharmoday Sahitya Prakashan

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Page 15
________________ ई. डब्ल्यू. होपकिन्स- "बौद्धों के द्वारा कभी भी निगंथों को नये सम्प्रदाय की तरह उल्लिखित नहीं किया गया और न ही उसके विख्यात संस्थापक नातपुत्त को उसका संस्थापक कहा गया। जाने किस स्रोत से जैकोबी दिखावटी तर्क करते हैं कि उसका सही संस्थापक महावीर से भी प्राचीन था और यह सम्प्रदाय बौद्धधर्म से पहले का है।" इस प्रकार व्यावहारिक रूप से प्रो. मेक्समूलर, ओल्डनबर्ग, बेंडोल, सर मोनियर विलियम्स, सर डब्ल्यू. डब्ल्यू. हंटर, हार्वे, व्हीलर, डॉ. आर. जी. भण्डारकर, डॉ. के. पी. जायस्वाल, बी.जी.तिलक इत्यादि समेत सभी पश्चिमी और पूर्वी आधुनिक विद्वानों को जैनधर्म की बौद्धधर्म से अधिक प्राचीनता के विषय में कोई संदेह नहीं है। इसके अलावा अब जैनों के 23 वें तीर्थङ्कर और भगवान् महावीर के 250 वर्ष पूर्व हुए भगवान् पार्श्वनाथ की ऐतिहासिकता को सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया है। वे उरग वंश के (कश्यप वंश भी कहा जाता है) काशी के राजा अश्वसेन के पुत्र थे और जैन परम्परा के 12 चक्रवर्तियों में से अन्तिम सम्राट् ब्रह्मदत्त (एक ऐतिहासिक व्यक्तित्व) के वंशज थे। जैकोबी कहते हैं “अब सभी के द्वारा अधिक सम्भाव्यरूप से स्वीकारा गया है कि पार्श्व ऐतिहासिक पुरुष थे।" डॉ. जार्ल चारपेंटियर कहते हैं- "हमें दोनों बातों को याद रखना चाहिये कि महावीर के ख्यात पूर्वज पार्श्व पूर्ण निश्चय से एक वास्तविक पुरुष के रूप में अस्तित्व में होने के कारण जैनधर्म निश्चित रूप से महावीर से प्राचीन है और इसके परिणाम स्वरूप महावीर से पहले ही मूल सिद्धान्तों के मुख्य बिन्दु निर्धारित हुए होने 15

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