Book Title: Jain Dharm Prachintam Jivit Dharm
Author(s): Jyotiprasad Jain
Publisher: Dharmoday Sahitya Prakashan

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Page 16
________________ चाहिए।" डॉ. आर. सी. मजूमदार- "यद्यपि उनमें से प्रथम 22 तो इतिहास के लिए अज्ञात हैं और उनमें से अधिकांश के सम्बन्ध में तर्कपूर्ण सन्देह दिमाग में लाये जा सकते हैं। परन्तु प्रतीत होता है कि 23 वें तीर्थङ्कर पार्श्व का अस्तित्व वास्तविक है। उनकी मृत्यु (निर्वाण) ईसा पूर्व 8 वीं शताब्दी में रखी जा सकती है।" हार्सवर्थ- "वे जैन अनेक संख्या में नातपत्त (महावीर वर्द्धमान) के पूर्वज प्रवर्तकों में विश्वास रखते हैं और इनमें से अन्तिम पार्श्व या पार्श्वनाथ के लिए विशेष पूज्यभाव रखते हैं। इस स्थान पर वे सही हैं, जहाँ तक पूर्व व्यक्तित्वों की बात है, वे अपेक्षाकृत अधिक काल्पनिक हैं। वास्तव में वे जैनधर्म के शाही संस्थापक थे (776 ई.पू.)। जबकि उनके उत्तराधिकारी महावीर कई पीढ़ी छोटे हैं और केवल प्रवर्तक के रूप में ही समझे जा सकते हैं। गौतम से भी प्राचीन काल से पार्श्व के द्वारा संस्थापित निर्ग्रन्थ नाम से प्रसिद्ध धार्मिक दल औपचारिक रूप से स्थापित हो चुका था। बौद्ध लेखों के अनुसार यह दल बौद्धधर्म के उत्थान के मार्ग में अनेक कठिनाइयाँ पैदा करता था।" प्रसिद्ध पुरातत्त्वविद् प्रो. रामप्रसाद चंदा कहते हैं, “श्वेताम्बर जैन सिद्धान्त में जो कुछ है, उसे पाली सुत्त पर्याप्त मात्रा में पुष्ट करते हैं। ईसा की प्रथम शताब्दी की मथुरा की प्राचीन जैन शिल्पकलाएँ कई जैन परम्पराओं की प्राचीनता और प्रामाणिकता का आश्वासन देती हैं। साधारणतया माना जाता है कि जैन साधु महावीर से पहले पार्श्वनाथ के द्वारा स्थापित नियमों के अनुसार चलते थे। उनके पास स्वयं उनके ही चैत्य भी थे। डॉ. बी. सी. लॉ., (डी. लिट, एफ. आर. ए. एस. बी. ___16

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