Book Title: Jain Dharm Prachintam Jivit Dharm
Author(s): Jyotiprasad Jain
Publisher: Dharmoday Sahitya Prakashan

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Page 43
________________ से द्राविडी भाषा थी और उनकी संस्कृति, धर्म इत्यादि भी द्राविडी था। उनके अनुसार केकड़ों की धरती, नान्दुर मोहनजोदड़ो का पुरातन नाम था। वे मानते हैं कि नान्दुर लिपि लेखन पर मनुष्य का प्रथम प्रयास था और नान्दुर अथवा मोहनजोदड़ो सभ्यता प्राक् राजवंशीय मिस्र की सभ्यता से भी प्राचीनतर थी और सम्भवतः मनुष्य की प्राचीनतम सभ्यता थी। इस सभ्यता का स्तर ताम्रपाषाण कहलाता है, लोहा अभी तक ज्ञात नहीं था। सर जान मार्शल के अनुसार यह सभ्यता “भारत की मिट्टी पर लम्बे पूर्वकालिक इतिहास को अवश्य रखती है, हमें ऐसे युग तक ले जाती है, जिसका धुंधलेरूप से मात्र अंदाजा लगाया जा सकता है और उसे आवश्यकरूप से मध्यउत्तरी भारत की तत्कालीन बहिन अथवा माता सभ्यता के साथ जुडा होना चाहिए (अर्थात् अयोध्या-हस्तिनापुर क्षेत्र)। प्रो. चाईल्डी ने लिखा, “भारत अपनी पूर्णतः व्यक्तिगत और स्वतंत्र सभ्यता के साथ तीन हजार वर्षों के आस-पास मिस्र और बेबीलोनिया का सामना करता आया है, तकनीकीरूप से शेष के समकक्ष है। और साफ तौर पर वह भारतीय मिट्टी में गहरी जमी हुई है। उसने सहन किया है, वह पहले से ही विशेषरूप से भारतीय है और आधुनिक भारतीय संस्कृति की बुनियाद बनाती है। अतः सर्वाधिक प्राचीन फिर भी अत्यन्त विकसित सिन्धु लोगों की सभ्यता, जिसका विख्यात पुरातत्त्ववेत्ताओं और पुराविदों के द्वारा द्रविड लोगों के रूप में जिक्र किया गया है, रिसले के अनुसार “जो भारत के प्राचीनतम निवासी हैं, जिनके बारे में हमारे पास कुछ जानकारी है, “जो वैदिकधर्म के जन्म से बहुत पहले अथवा आर्य सभ्यता के प्रारम्भ से भी पहले, इन लोगों के जैनमत का होने के पर्याप्त प्रमाण प्रस्तुत करती है। ये प्राचीन जैन प्रारम्भिक ब्राह्मणिक 43

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