Book Title: Jain Dharm Prachintam Jivit Dharm
Author(s): Jyotiprasad Jain
Publisher: Dharmoday Sahitya Prakashan

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Page 50
________________ अन्य भी कार्यों का श्रेय उन्हें देता है। वह उन्हें लिनायोस कहता है, क्योंकि उन्होंने खोजा कि रस उत्पन्न करने के लिए फलों को कैसे बटोरा और दबाया जाना चाहिये। उसके समय से पहले, कहा जाता है कि पृथ्वी पर निरन्तर उत्पन्न होनेवाले फलों पर ही मूल निवासी निर्भर थे। उसका पुत्र हर्कुलस एक महान् योद्धा और विजेता था, वह कई पत्नियाँ और अनेक बच्चे रखता था। डायोनिसस 250 वर्षों की लम्बी उम्र तक जीवित था। अब यह सम्पूर्ण विवरण किसी अन्य नहीं, बल्कि भगवान् ऋषभदेव अथवा आदिनाथ (प्रथम ईश्वर) पर संकेत करता है, जो धर्म के प्रथम प्रचारक, विधि और न्याय के प्रथम प्रकाशक, कला, उद्योग और सामाजिक संगठन के मार्गदर्शक थे। जिसने भोगभूमि (प्रकृति आश्रित प्राचीन जीवन) की समाप्ति पर कर्मभूमि (कर्म और बुद्धि का युग) को उद्घाटित किया। उनके पुत्र प्रथम विश्वविजेता भरत चक्रवर्ती की कई पत्नियाँ और अनेक पुत्र थे। अतः कोई संदेह नहीं है कि यह दो हजार वर्षों से अधिक पुरानी परम्परा निश्चितरूप से भगवान् ऋषभदेव का संकेत करती है, जिनका काल उस परम्परा के अनुसार ई. पू. 6765 अथवा लगभग 9000 वर्ष पूर्व आयेगा। कम से कम यह वह काल है, जो परम्परागतरूप से ई.पू. तृतीय-चतुर्थ शताब्दी में माना जाता था। लेकिन प्रसंगवश यह उपर्युक्त भूगर्भविज्ञान सम्बन्धी आँकड़ों से पर्याप्त मधुरता बनाये हुये है और सर्वाधिक प्राचीन सिन्धुघाटी की सभ्यता की शुरूआत से (ई.पू.6000), प्रारम्भिक मिस्र की सभ्यता से (ई.पू. 5000), आर्यों के आगमन से (ई.पू. 3000) भी पर्याप्तरूप से प्राचीन है। और इस प्रकार जैनधर्म सम्पूर्ण प्रागैतिहासिक (प्राक् लिखित इतिहास), पूर्व-ऐतिहासिक और ऐतिहासिक काल में मौजूद पाया जाता है। मानव का यह प्राचीनतम धर्म मुख्यरूप से साधारणतया धर्म 50

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